डॉ.लाल रत्नाकर
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का
या सरकारी बंदोबस्त !
सड़कें, बिजली, पानी का
या स्वास्थ्य जनित इंतजामों का
झोला छाप डाक्टरों का
या लम्पट नेतागिरी का
जन्म मृत्यु के पहरेदारों
या सरकारी हिस्सेदारी का
नात-बात या अपनों का
किसकी बात करूं
जिनको देखो वही सुखी हैं
या सुख का नाटक करते हैं
अपने अपने छाँट छाँट कर
सम्बन्ध जताते हैं
भाई बंदी गुजर गयी है
किसी जमाने में
अब जो नयी संस्कृति आयी
गाँवोँ की हिस्सेदारी में
आयातीत है, देशी है,या
परदेश से आयी है !
सरकारी है या उधार की
करमचारिणी विचारी है
स्कूलों में, हस्पतालों में
उसकी जो कारगुजारी है
अच्छे अच्छे गुजर जा रहे
इनके इंतजामों से
ये विकास के सरकारी नाटक
दर्ज करूं ! या ....
माँ बाप तो ज़िंदा हैं
पर दुःख के मारे हैं
नौजान के हाल देखकर
हलाकान संरक्षक हैं
मेहनतकश के मेहनत की
कीमत सरकारी है
मोबाइल पर खबर मिली है
वो बेहद दुखदायी है
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
गाय भैंस के गोबर का
या दूध दही की मार्केटिंग का
स्कूलों के उन्नतीकरण का
या बढ़ते पब्लिक स्कूलों का
गाँवो के उन्नतिकरण का
या शहरी होने का
भाईचारा या अपनेपन में
हिस्सेदारी का
ये लेखा इतना विकट हो गया
भाई हिस्सेदारी का
बाबूजी फिर खड़े हो गए
आखिर सबकुछ खोने पर
रोते रोते बयां कर रहे
देखो मैं तो जिन्दा हूँ
बच्ची तुम अब फिकर न करना
मैं यूँ ही खड़ा रहूँ
कौन बताये उनको अब ये
बैशाखी टूट गयी
इसी व्यवस्था ने छिनी है
जिनकी खुशियों को
आश सांत्वना दे रहे हैं
हम उसी विचारी को।
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
(26 दिसंबर 2012, 2-15 की वह घडी जब एक मिस काल ने चौंका दिया और जब काल बैक किया तो रोने की आवाजों ने तुरत निकल 'ससुराल' चलने को बाध्य कर दिया भोर के 3-15 पर वहां पहुंचकर जो कुछ देखा, उसे किसी तरह बयां नहीं किया जा सकता पर जो कुछ बन पड़ा है लिख रहा हूँ)
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का
या सरकारी बंदोबस्त !
सड़कें, बिजली, पानी का
या स्वास्थ्य जनित इंतजामों का
झोला छाप डाक्टरों का
या लम्पट नेतागिरी का
जन्म मृत्यु के पहरेदारों
या सरकारी हिस्सेदारी का
नात-बात या अपनों का
किसकी बात करूं
जिनको देखो वही सुखी हैं
या सुख का नाटक करते हैं
अपने अपने छाँट छाँट कर
सम्बन्ध जताते हैं
भाई बंदी गुजर गयी है
किसी जमाने में
अब जो नयी संस्कृति आयी
गाँवोँ की हिस्सेदारी में
आयातीत है, देशी है,या
परदेश से आयी है !
सरकारी है या उधार की
करमचारिणी विचारी है
स्कूलों में, हस्पतालों में
उसकी जो कारगुजारी है
अच्छे अच्छे गुजर जा रहे
इनके इंतजामों से
ये विकास के सरकारी नाटक
दर्ज करूं ! या ....
माँ बाप तो ज़िंदा हैं
पर दुःख के मारे हैं
नौजान के हाल देखकर
हलाकान संरक्षक हैं
मेहनतकश के मेहनत की
कीमत सरकारी है
मोबाइल पर खबर मिली है
वो बेहद दुखदायी है
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
गाय भैंस के गोबर का
या दूध दही की मार्केटिंग का
स्कूलों के उन्नतीकरण का
या बढ़ते पब्लिक स्कूलों का
गाँवो के उन्नतिकरण का
या शहरी होने का
भाईचारा या अपनेपन में
हिस्सेदारी का
ये लेखा इतना विकट हो गया
भाई हिस्सेदारी का
बाबूजी फिर खड़े हो गए
आखिर सबकुछ खोने पर
रोते रोते बयां कर रहे
देखो मैं तो जिन्दा हूँ
बच्ची तुम अब फिकर न करना
मैं यूँ ही खड़ा रहूँ
कौन बताये उनको अब ये
बैशाखी टूट गयी
इसी व्यवस्था ने छिनी है
जिनकी खुशियों को
आश सांत्वना दे रहे हैं
हम उसी विचारी को।
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
(26 दिसंबर 2012, 2-15 की वह घडी जब एक मिस काल ने चौंका दिया और जब काल बैक किया तो रोने की आवाजों ने तुरत निकल 'ससुराल' चलने को बाध्य कर दिया भोर के 3-15 पर वहां पहुंचकर जो कुछ देखा, उसे किसी तरह बयां नहीं किया जा सकता पर जो कुछ बन पड़ा है लिख रहा हूँ)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें