हमारे आस पास के लोग
उनके ख़यालात संस्कृति
और उन्ही के सुख दुःख
हमारी पहचान बन जाते
हम आज तक उसे ढो रहे हैं
बिना किसी हक़ के या यही
मेरा हक़ है जिसे मैंने कभी
भी नहीं माँगा और न आगे
मांगना है अपना हक़ फिर
भी आशंका है उन्हें की कहीं
मैं फिर से अपने हक़ की बात
उजागर न करने लगूँ उनसे !
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