-डॉ लाल रत्नाकर
कोई भगवान कोई मानव महान
बन बैठा है आज भाग्य विधाता !
कल तक कोलाहल में शामिल थे
आज सत्ता की थाली में व्यंजन हैं !
उनके वजूद ऐसे ही नहीं बढे हैं
हमने अपने परिजनों को गढे हैं !
पार्टियां परिवारों की सम्पदा हैं
तभी तो वो आसमान चढ़े हैं !
सत्ता की दावेदारी में विचारों के
अस्तित्व ही तो आज भी खड़े हैं!
कोई अफसर ईमानदारी के नाते
नेता महान होने का दम्भ भरे है !
राजनीती में जिस ईमान की है
जरुरत है वह कहीं खो गयी है!
केजरी की बेदी हो या साजिया
का इल्म हो सत्ता की थाली में !
कौन नहीं जानता 'मोदी' जी का
भारत किसके लिए सज़ रहा है !
जो सदियों से तिजोरियों का हक़
हर तरह से अपने पक्ष में रखा है !
समय और साख की कोई जरुरत
जब मीडिया दलाल हो गयी हो !
1 टिप्पणी:
धुंध भी है रोशनी भी
तनहाई और जमहाई भी
चमन को रौंदने वालों की
बारात मेरे घर भी आयी है
दुश्मनी किससे करें उससे
जिसने दोस्त दोस्ती निभाई है
बातें बहुत हैं कितनी करूं
किसकी करूं किसकी न करूं
आप से उनसे उनकी या अपनी
अपनों की करूं या अपनी करूं
मेरे दोस्तों उनका भला करना
जिसने जी भर मेरा बुरा किया ।
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