शनिवार, 9 मार्च 2024

मेरे रंजोंगम के रंग निराले है,

 मेरे रंजोंगम के रंग निराले है,
जो भी हैं अंदाज उनका,
अलग है अवाम से, अलग है।
वह दिल के कितने रंगीन हैं
दिल के भले ही वह काले हैं !
जो चेहरे पे रंगीन नकाब डाले हैं!
वह भी कितने निराले हैं जो 
जो हर रंग का नक़ाब डाले हैं !
आईए कभी इनसे गुफ़्तगू करें ?
सही ग़लत पर चर्चा तो करें !
भले ही वह गलत को सही माने हैं।
-डॉ लाल रत्नाकर


दिमाग़ पर क़ाबिज़ जो है, मिज़ाज पर नज़र उसकी,

 


दिमाग़ पर क़ाबिज़ जो है,
मिज़ाज पर नज़र उसकी,
कैसे कह दूँ ख़बर नहीं !
बेख़बर जो दिखते है।
ख़बर आज वही बनते है।
चमन को रौंदने वाले !
बेरहम नहीं होते क्योंकि,
मस्तिष्क पर सवार रहते हैं!
मज़हब की बात करते हैं!
पर मज़हबी नही होते ?
मज़हब तुम्हारे धर्म मे ,
कहीं नज़र तो नहीं आता !
कहते हो खुदा ख़ैर करे !
ईश्वर सबका भला करे !
पर तुम तो भेदभाव करते हो !
यह जहर जो तुम्हारे भीतर है,
कहॉ से आया है नासूर तेरा ?
जो दिल में संजो के रखते हो,
जुमलों के भजन करते हो !
शरीफ़ बनते हो ज़ुबान में जहर रखते हो !
मेरे मसलहे पे दखल रखते हो !
ख़ुद तो निज़ाम पर बैठे हो !
हमको परवर दिगार कहते हो !
हमको अल्लाह खुदा कहते हो,
ख़ुद तो मनु की तरह रहते हैं ?

-डॉ लाल रत्नाकर

दोस्त दुश्मन

 


दोस्त दुश्मन
फर्क क्या है दोनों में
व्यक्तित्व का ही।
फरिस्ता थोड़े 
महफूज़ होते हैं 
खुदा तुमसे। 
खंजर कहाँ 
छुपा रक्खे हो भोले 
नस्ल किसकी !
फितरत है 
फलसफा थोड़े है 
उनकी छोडो !
नसीहत दे 
मगर ये ध्यान हो 
वह कौन है !

-डॉ लाल रत्नाकर

चोर वह नहीं है

चोर वह नहीं है
जिसे हम समझ रहे हैं।
चोर वह है जिसको हम
साधु समझ रहे हैं।
साधु चोर नहीं होता ?
प्रश्न तो यह उठता है,
यह सवाल परेशान कर देता है
जिसे हम ईमानदार 
समझ रहे होते हैं।
चोरी करने के बहुत सारे तरीके हैं।
इसलिए सबको चोर नहीं कह सकते।
जब यह बात जग जाहिर है।
जो व्यवस्था केंद्रीयकृत चोर है।
तो उससे नियंत्रित व्यवस्था,
कैसे साधु हो सकती है।
आज का सबसे ज्वलंत सवाल,
हमारे सम्मुख उपस्थित हो गया है।
इसका जवाब कौन देगा?
-डॉ.लाल रत्नाकर



शनिवार, 23 दिसंबर 2023

और हम आपका आदर करें।


बहस तो हो पर !
ईमानदार बहस हो!
बहस में विचार हों।
ना की तिकड़म और प्रचार हो।
सत्य का आगाज हो।
विज्ञान का सिद्धांत हो।
ना अंधविश्वास हो।
ना पाखंड का साम्राज्य हो।
धर्म कर्म ज्ञान और अज्ञान का।
लेखा-जोखा हो।
झांकिये तो अपने अंदर।
जहाँ दूषित न विचार हो।
आईए खुली बहस करें।
भेदभाव से परे - कुतर्कों से दूर 
यदि है यह शर्त मंजूर 
फिर स्वागत है आपका 
और हम आपका आदर करें।

-डॉ लाल रत्नाकर


गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

आवाहन:



हौसलों की आफजाई करना।
वैसे ही जरूरी है जैसे नफरत का विरोध।
आईए मोहब्बत के पैगाम लेकर!
एक बार फिर उनके बीच चलें।
जो भक्ति में अपनी शक्ति खो चुके हैं।
अंधविश्वास में अंधे हो गए हैं।
दुश्मनों के बीच सम्मानित हो रहे हैं।
इसलिए कि अपनों से नफरत करते रहें।
जिन्हें गुमराह किया गया है,
उनके सेनापतियों से ही।
जिससे वह लड़ न सकें अपने अधिकारों का युद्ध।
आंदोलनो से अलग हो जाएं,
और भूल जाएं अपनी गुलामी।
नाराज किया गया है चुगली करके।
अभिमान नहीं अपमान सहिऐ,
जो आपसे बिछुड़ गए हैं।
अपने स्वार्थ में समाज को भूल गए हैं।
संस्कृति को, साम्राज्यवाद को,
समझने की भूल कर रहे हैं।
वर्तमान में कंगाल हो रहे हैं।
और भूत में मालामाल होने की कल्पना में।
भक्तनुमा दिन रात उनका गुणगान कर रहे हैं।
जिनके खिलाफ कबीर ने उनको जगाने का प्रयास किया था।
पेरियार ने प्रयोग किया था और सच्चाई उजागर की थी।
उनके अज्ञानता के पाखंडी़ हथियार की।
ज्योतिबा फुले ने आंदोलन खड़ा किया था।
बाबासाहब ने जिनको अधिकार दिया।
मगर वह हैं कि माया के घनचक्कर में पड़े हैं।
आईए चलिए उनके बीच चलते हैं।
अगर आप समय से नहीं गए।
और उनके इर्द-गिर्द घूमते रहे,
जो आपको और आपकी जाति को नफरत करते हैं।
आपसे दिखावटी मोहब्बत की मिमिक्री करते हैं।
जो विषाणुओं की तरह वहां दूत लगा दिए गए हैं।
जो उन्हें पाखंड में पारंगत कर रहे हैं।
अपने लोगों से ही नफरत के गुर सीखा रहे हैं।
बहुजनों की जातियों से जातियों को लड़ा भिड़ा रहे हैं।
नफरत के साजो सामान,
निरंतर उनके मध्य ले जा रहे हैं।
आईए उद्घाटन करिए नए समाजवाद की।
समता के सिद्धांत की।
कहीं बहुत देर ना हो जाए।
संविधान को बचाने के अभियान की।
-डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

हजार पांव भी हों तो


 हजार पांव भी हों तो
सफर कट नहीं सकता!
दो पांव से हम नापते हैं
दुनिया में अच्छे लोग।
हजारों बुरे लोग 
बिखरे हुए हैं चारों ओर!
निकलिए तो देखिएगा
नजारा खुली नजरों से
हर गांव शहर में बैठे हैं, 
मगरमच्छ के मानिंद!
डगर डगर पर लोग।
दांतों में जहर हो तो
वह और बात है।
सांसों में जहर का 
सैलाब वहां है।
आंखों में शर्म
बेशर्म की तरह कहां।
देखें जरा उन्हें।
जो दिखते हैं कहकहां!
चेहरे पर चेहरे ओढ़े हैं
वह यहां वहां !

-डॉ लाल रत्नाकर

अंधेरे में खोजने निकले थे वो।

 

अंधेरे में खोजने निकले थे वो।
खोज में उनको जो कुछ मिला।
साथ लाए मुफ्त बिना विचार के,
मदमस्त हैं जो लेकर आए हैं वह।
उनको कहां पता कि वह भक्त हैं।
उनसे ज्यादा खुद ही ये आशक्त हैं।
कुछ साथ उनके और आए हैं यहां।
जो बीमार हैं एक ही बिमारी के।
एक दूसरे के मददगार हैं लाचारी के।
सत्ता के लिए उनकी तलाश जारी है।
विचारों की महामारी एक बीमारी है।
समाजवाद की अवधारणा से, 
उनकी वैचारिक दूरी जारी है।
यह बदलने निकले हैं जग को,
इनका बदलना रोज एक बीमारी है।
भला होता नहीं दिखता कहीं से।
इनका डर भी सरकारी है।

-डॉ.लाल रत्नाकर।


भविष्य की रणनीति और कांग्रेस की राजनीति


 भविष्य की रणनीति
और कांग्रेस की राजनीति
इन दोनों में बहुत ही
नाजुक संबंध हैं,
जिसके बल पर 
कुछ नहीं कहा जा सकता
और ना ही 
किया जा सकता है।
भारतीय राजनीति को
जिन व्यापारियों ने
हड़प लिया है।
कमलनाथ जी उसमें
प्रमुख नाम है।
इनके हाथ में,
यद्यपि वह ताकत नहीं है
अन्यथा यह कहीं से भी
कम नहीं होते।
चलिए अच्छा हुआ,
इनको इनके दायित्व से
उनके दल ने 
मुक्त कर दिया है।
मित्रों की तरफ जाने में,
इन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।
ऐसा मेरा मानना है।
यह सच होगा या नहीं,
उस पर कुछ नहीं !
कहा जा सकता.

डॉ लाल रत्नाकर

सृजन के सवाल को

 

सृजन के सवाल को
समझने की जरूरत है।
कला का कौशल हो,
कविता के रूप में !
मन को भी भाता हो,
आनंद प्रदान करता हो।
रचना हो, संरचना हो।
सब अभिव्यक्ति ही तो है।
आईए हम स्वागत करें,
नए प्राकृतिक दृश्य का !
अदृश्यमान दृश्य का।
सम्मान हो अभिमान हो।
ज्ञान का गुणगान हो।
भाव का बखान हो।
मन मचलता हो अगर तो,
पहुंच भी आसान हो।


-डॉ लाल रत्नाकर

गांव की बात करें।



 

आईए हम !
गांव की बात करें।
शुरू कहां से करें।
सुबह के कोहरे से
शाम के धुंधलके से,
शुद्ध वायु और
नलके के जल के
स्वभाव और प्रभाव से,
खिले हुए फूलों से
मुरझाए हुए पतझड़ से
कोने में बैठे हुए
पक्षियों के कौतुहल से
गुजरे हुए कल के 
कोलाहल से,
बुजुर्गों की मंशा से !
या अपनी प्रशंसा से।
नफरत की खेती में
उगी हुई फसलों से।
दूध की शुद्धता से
पानी की अशुद्धता से
कीचड़ और डामर की
आपसी प्रतिद्वंद्विता से
नए-नए ठूंठों से।
बड़े-बड़े झूठों से,
किसकी बात करें।
गांव की बात करें।

-डॉ लाल रत्नाकर

अंधेरे में खोजने निकले थे वो।

 
अंधेरे में खोजने निकले थे वो।
खोज में उनको जो कुछ मिला।
साथ लाए मुफ्त बिना विचार के,
मदमस्त हैं जो लेकर आए हैं वह।
उनको कहां पता कि वह भक्त हैं।
उनसे ज्यादा खुद ही ये आशक्त हैं।
कुछ साथ उनके और आए हैं यहां।
जो बीमार हैं एक ही बिमारी के।
एक दूसरे के मददगार हैं लाचारी के।
सत्ता के लिए उनकी तलाश जारी है।
विचारों की महामारी एक बीमारी है।
समाजवाद की अवधारणा से, 
उनकी वैचारिक दूरी जारी है।
यह बदलने निकले हैं जग को,
इनका बदलना रोज एक बीमारी है।
भला होता नहीं दिखता कहीं से।
इनका डर भी सरकारी है।

- डॉ.लाल रत्नाकर।


गुरुवार, 2 नवंबर 2023

झूठ के अभियान को।



यह समय है 
अधर्म के उन्माद का,
व्यक्ति के अवसाद 
और अभिमान का।
तन खड़ा है, मन अड़ा है, 
झूठ के मचान पर।
जो आजकल घर-घर में 
कर गया प्रवेश है।
वहां सुरक्षा का नहीं,
कोई भी समावेश है।
उद्देश्य उन सबका एक है।
सब कुछ हडप अपना कहें।
निर्धनता का यही दोष है।
पीढियां इतिहास की !
तरह ही है खड़ी इस युग में।
जानकारी लेने की बजाय।
इतिहास अपना थोपती हैं, 
झूठ और पाखंड की।
अभिमान से वह परोसते हैं।
अपमान के उस उद्देश्य को।
जिससे गुलामी थोप दी है।
आज आजादी के ललाट पर।
साहूकार का सहारा,
लेकर उस ठेकेदार ने।
यह समय है 
अधर्म के उन्माद का,
व्यक्ति के अवसाद 
और अभिमान का।
तन खड़ा है, मन अड़ा है,
झूठ के मचान पर।
जग को बढ़ा रहा है, 
झूठ का वह फलसफा।
गढ़ रहा है फिर से वह 
अधर्म के आख्यान को।
झूठ के अभियान को।

-डॉ लाल रत्नाकर 

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

बहुत हुई अब जुमले बाजी।

बहुत हुई अब जुमले बाजी।
बात करें अब कामकाज की।
सदियों सदियों का पाखंड।
नऐ कलेवर में आया है।
भक्तजनों की अंधभक्ति ने,
जनमानस को छलने खातिर!
विविध रूप का वेश धरा है।
अगवा करने वाला भी !
अब भगवा पहन पहन के।
गायों को छुट्टा छोड़ दिया।
इंसानों को जो बांध दिया है।
बुलडोजर का भय दिखलाकर।
हौसला ही सबका तोड़ दिया है।
लाठी डंडा कंकड़ पत्थर।
व्यवस्था पर प्रहार का था सिम्बल ।
जनता का सबसे माकूल हथियार रहा है।
अब उसके बदले मोबाइल पर।
व्हाट्सएप के हुए गुलाम सब।
ट्विटर ट्विटर कर कर के।
जब नेताजी हो गए बेहाल।
आओ हम सब मिलकर के,
वैज्ञानिक उपचार पर करें विचार।
बहुत हुई अब जुमले बाजी।
बात करें अब कामकाज की।

डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

न जाने क्यों उन्हें मेरी कला से सख़्त नफ़रत है, न जाने क्यों .......

 


न जाने क्यों उन्हें मेरी कला से 
सख़्त नफ़रत है, न जाने क्यों .......   
मोहब्बत की शहादत उन्हें चहिए!
जो जीने के लिए जरूरी है।
मोहब्बत यदि कहीं बिकती हो तो !
किसी भी रूप में क्यों ना हो !
बतला दो ! लाएँगे हम भी वहॉ से !
खरीद कर मतलब के लिए उनके ! 
अब तो जमाने का कहर देखो!
शहर आओ गौर से देखो !
यहां बिकने लगी है इज़्ज़त !
मोहब्बत कैसे होगी इसकी
नहीं चिंता उनको ?
सजाने में लगे हैं हम बहुत कुछ उसमें !
जो नफरत की सोच तो रखते हैं।
पर विश्वगुरु बनने की चाहत रखते हैं।
उन्हें मोहब्बत के आडंबर का क्या करना!
उन्हें अपराध के सारे हथकंडे साथ लेकर!
यही सीखा है उसने पाखंड पढ़कर।
जो नए स्कूल खोले गए हैं,
पुरानी पद्धतियों के ऊपर।
जहां अवसर नहीं होगा बहुजन को।
स्त्रियां जा नहीं पाएंगी विकास की डगर पर।
उन्हें संसद में लाने की!
नई जो नीति आई है!
वहां यह क्या करेगी इस पर ?
कौन सवाल उठाऐगा !
डॉ लाल रत्नाकर






रविवार, 8 अक्तूबर 2023

ईमानदारी, प्रेम और मोहब्बत के विरवे जरूर बो देना !




मेरे हिस्से के खेत के  एक कोने में
रवि खरीफ और जायद की फसलों में,
ईमानदारी, प्रेम और मोहब्बत के
विरवे जरूर बो देना !
देखना तुम्हारे बखार में शायद !
यह ना बचे हों तो कहीं से उधार ले आना!
नफरत की दुकान पे बिक रहे बिरवे,
बहुत खतरनाक है उन्हें मत डालना।
देखना मेरे ननिहाल में बचे होंगे कुछ बिरवे।
या अन्य किसी रिश्तेदारी में,
मेहनत के ईमानदारी के और सत्य के!
वहीं से ले लेना बहुत सावधानी से।
पड़ोसी के इरादे से सावधान रहना।
वह चालाकी की फसल न रोप दे।
मेरे हिस्से के उस कोने में।
मेरे दोस्त सब कुछ यही रहेगा!
जब तुम जा रहे होगे तो हाथ खाली होगा।
मेरी बात हो सकता है तुम्हें गाली लगे,
मगर मेहनत ईमानदारी की फसल ही!
अच्छी सेहत और समझ देती है।
बुजुर्ग कहते थे फर्टिलाइजर मत डालो!
इससे बीमारी बढ़ती है।
जमीन की जमीर खत्म हो जाती है।
नफरत का जहर जन-जन में फैल जाता है।
प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों साथ छोड़ जाते हैं।
तभी तो वह हाड़ तोड़ मेहनत कर!
हमें प्रकृति के और प्रवृत्ति के गुणों से,
सींचकर पाला और पोशा है।
मोहब्बत और ईमानदारी के विरवे रोपा है।
जिससे हम खड़े रह सके, 
सत्य और मोहब्बत के साथ।

डा.लाल रत्नाकर


रविवार, 1 अक्तूबर 2023

वक्त जाते देर नहीं लगता !

-डॉ.लाल रत्नाकर
वक्त जाते देर नहीं लगती है !
एक वक्त ऐसा भी होता है
जब वक्त गुजरता ही नहीं है ।
और एक वक़्त ऐसा भी होता है,
जब वक़्त कम पड़ जाता है,
कहते हैं वक्त वक्त की बात है।
कहीं धूप्प अंधेरा है,
कहीं आग की बरसात है।
कहीं जलमग्न और कहीं जनमग्न।
हो गया भू भाग है !
तो कहीं धरम का-कहीं अधरम का 
व्यापर और उसी का बाज़ार है। 
यही तो वक्त का मिजाज है।
यह नया बिगड़ा हुआ समाज है !
यह कैसा राजकाज है,
यह कैसा राजकाज है!



-डॉ लाल रत्नाकर  


जिंदगी पीली नीली लाल, काली-सफेद।






जिंदगी पीली नीली लाल, 
काली-सफेद।
गुजरती जाती है।
उबड़ खाबड़।
पगडंडियों से,
एक्सप्रेस वे तक।
वायु मार्ग से भी
हाल-बेहाल।
पर झूठ से लड़ने की शक्ति।
हवाई चप्पल की अंधभक्ति।
तुम्हें मुबारक, तुम्हें मुबारक।
हमारे संघर्षों की,
जीत तुम्हें मुबारक,
हार हमें मुबारक।
झूठ तुम्हें मुबारक।
सच हमें मुबारक।
सब कुछ यही रहेगा।
आना जाना तो लगा रहेगा।
तेरा भी ओ झूठे।
सच यूं ही खड़ा रहेगा।

-डॉ.लाल रत्नाकर

एक सूरज है,


एक सूरज है,
जो रोज चमकता है,
एक चांद है
जो रात में चमकता है
मगर एक कौम है,
जिसके खिलाफ
वह रोज नफरत भरता है,
कभी सड़क पर,
कभी घर में,
कभी संसद में,
ललकारता है।
एक सूरज है 
जो रोज चमकता है।

-डॉ लाल रत्नाकर
 

परिस्थितियों के हाथ

 

समय के साथ,
परिस्थितियों के हाथ
आबादियां और बर्बादियां!
आमतौर पर चलती रही हैं
उन्हें रोकने के लिए
जो जो आगे आए।
वह उन्हीं के साथ हो लिए।
आपदा में अवसर
अवसर में आपदा।
अर्थ का अनर्थ कर देता है।
जब जब हथियार 
निकम्मे के हाथ में होता है।
खतरा बढ़ जाता है 
कम नहीं होता।
यह देखना होगा।
कौन आपके साथ होता है।
कौन साथ के लिए,
मतलब से साथ होता है।
वक्त संघर्ष का होता है तो
संघर्ष संघर्ष बच रहा होता है
वक्त कहीं दूर चला जाता है।
फिर वह तब लौट आता है
जब संघर्ष खत्म हो जाता है।
समय समय के साथ।
परिस्थितियों के हाथ।
कौन-कौन होता है।

-डॉ लाल रत्नाकर