गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

छलावा!

 


छलावा!
स्वयं से, परिवार से,
समाज से, संस्कृति से, धर्म और
राजनीति से।
परंपरा और परिधान से, आचरण से, मन से, 
वतन से, सत्य और संविधान से ?
छलावा!

जीवन से, मृत्यु से, कर्म और अकर्म से।
आस्था से, प्रतीकों से, लोकाचार से, 
शब्दों के माध्यम से।
छलावा!

दृश्यावलोकन से, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से, 
न्यूज़ चैनलों से, प्रकृति की गोंद से, आसमान से।
छलावा श्मशान से!
श्रद्धालुओं से, भक्तों से, गोबर भक्तों से, 
विवेक और चिंतन से, मन:स्थिति के मंथन से।
छलावा! 

दुनियावी सत्य से, मन की नीयती से,
देश की प्रगति से। 
छलावा!

-डा.लाल रत्नाकर

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

प्रतीकों का पाखंड से अनंत काल से जो नाता है।

 


प्रतीकों का पाखंड से 
अनंत काल से जो नाता है।
जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ता है 
यह षड्यंत्र और गहराता जाता है।
धर्म में, राजनीति में, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में। 
जिनको जिनको सांस्कृतिक साम्राज्यवाद 
समझ में नहीं आता है। 
बिना प्रतीकों का अर्थ समझे।
समाज भीड़ की तरह खिंचा जाता है।
अंधविश्वास, चमत्कार और पाखंड। 
प्रतीकों से अच्छी तरह परोसा जाता है।
छापा, तिलक, कलावा बहुजन को बहुत भाता है। 
नाना प्रकार से लिख और बोलकर कबीर ने।
चिल्ला चिल्ला कर आज भी समझा रहे है। 
गोबर भक्तों को यह कहां समझ में आता है।
प्रतीकों का पाखंड से 
जो अनंत काल से नाता है।
तभी तो अपना विनाश उन्हें भाता है। 

- डॉ लाल रत्नाकर

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

आस्था या अंधविश्वास ?




















आस्था या अंधविश्वास ?
उनके प्रति जिनके मन में नफरत है !
उनके प्रति जो गैर बराबरी में विश्वास करते हैं। 
उनके प्रति जो वर्ण व्यवस्था का सिद्धांत मानते हैं। 
उनके प्रति जो संविधान में आस्था नहीं रखते। 
उनके प्रति जो हमारे हक़ पर कुठाराघात करते हैं ।
या उनके प्रति जो अपनी आंखों के सामने ,
हमारे लोगों की अकाल मृत्यु पर चिंता नहीं करते।
झूठ बोलते हैं और सच छुपाते हैं ,
सही-सही संख्या नहीं बताते !
किन पर आस्था, कैसी आस्था। 
अंधविश्वास पाखंड और चमत्कार पर आस्था। 
उनके मानसिक व्यभिचार पर आस्था।
सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक 
भेदभाव पर आस्था।
कैसी आस्था !

-डॉ लाल रत्नाकर

गुरुवार, 30 जनवरी 2025

धर्म के रूप में आमजन को स्वीकार है



 धर्म !
यह कैसा धर्म है 
जो मृत्यु को भी 
धर्म के रूप में 
आमजन को स्वीकार है 
भीड़ से भिड़ाकर
आमजन को रौंदकर 
कुचल डालता है। 
यह आपदा में अवसर है 
या अवसर की आपदा है 
यह सत्ता का व्यापार है 
व्यापार का बाजार है 
फिर धर्म कैसे 
शर्म किसको हत्या का 
कौन जिम्मेदार है 
धर्म के अत्याचार का 
हिंदू होने का प्रमाण 
बांटने का इस परम्परा से 
क्या सरोकार है। 
यह कैसा व्यापार है।
धर्म का अत्याचार है। 

-डॉ लाल रत्नाकर 

सोमवार, 20 जनवरी 2025

प्रतिघात का आघात क्या होता कभी एहसास है !

प्रतिघात का आघात क्या
होता कभी एहसास है !
प्रतिवर्ष,प्रतिमाह, प्रतिदिन
समय का भान होता है क्या?
यदि नहीं एहसास होता है !
हो मानव के रूप में कैसे ?
समझ लें पशुवत आचरण से
आसन्न मस्तिष्क से सन्न हो।
विपन्न हो या संपन्न हो !
मनुष्य तो हो मनुष्यता कहां?
धर्म, कर्म, अधर्म या स्वधर्म !
आस्तिक, नास्तिक, विधर्मी !
कौन है किसको समझ रहे हो!
कभी गंगा में कभी गोबर में
नहा रहे हो पवित्र होने के लिए।
अपवित्र मन धुलता नहीं है !
यदि मनुष्य हो पशु नहीं!
बात करते हो हृदय की
हृदय जब है ही नहीं !
प्रतिघात का आघात क्या
होता कभी एहसास है !

- डॉ लाल रत्नाकर


वह विकास के मार्ग पर विनाश परोस रहा है ।

वह विकास के मार्ग पर
विनाश परोस रहा है ।
और हम खुश हैं कि वह
धर्म की चासनी में अधर्म
मेरे दुश्मन के लिए बो रहा है।
अधर्म को स्वधर्म बनाने वाले
धर्म को हथियार बनाने वाले
हमें तुम्हारा इंतजार है।
क्योंकि वह अधर्म पर सवार है
जिसको विकास बता रहा है।
धर्म सभी का होता है
दूसरे का धर्म विधर्मी नहीं होता,
धर्म कभी जहर नहीं बोता।
सत्ता के लिए धर्म की सवारी
वह नहीं करता जो धार्मिक है।
यह साल भी गुजर जाएगा
सवाल यूं ही खड़ा रह जाएगा
क्योंकि उसकी आंखों पर चश्मा
काले शीशे का लगा हुआ है।
उसे कुछ भी नहीं दिख रहा है।
तुम्हारा नेतृत्व तुम्हें मुबारक
क्योंकि वह डरा डरा है।
जातीय, वर्गीय, सामाजिक
मूल्यों का नीलाम होना।
जो बाजार में चढ़ा हुआ है।

- डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 6 जनवरी 2025

नये वर्ष में प्रश्न पूछिए

नये वर्ष में प्रश्न पूछिए
समस्याओं के बारे में !
अपने अपने जनप्रतिनिधियों से
संविधान के बारे में
जिनके आका बोल रहे हैं
बाबा साहब के बारे में
इनको गुब्बारे पकड़ा कर
मनुस्मृति पर देश चलाने के
सवाल पर ?
जो कुछ हो रहा है, क्या वह
संविधान सम्मत है?
पिछड़ों के जनप्रतिनिधियों का
दलित सांसदों से क्या नाता है,
क्या इन सबके दिल में, मन में
संविधान से कुछ नाता है।
पूछिए जरूर पूछिए ?
अपने अपने जनप्रतिनिधियों से।
प्रश्न पूछिए कहीं देर ना हो जाए,
आपका पद भी गफलत में
सरक न जाए मनुवाद में !
वर्ण व्यवस्था में अधिकारों पर
लगा बहुत मजबूत ताला है।
बाबा साहब ने तोड़ा था,
मनुस्मृति को जला जलाकर!
प्रश्न पूछिए आका से
आगे का क्या खाका है।

- डॉ लाल रत्नाकर

रविवार, 5 जनवरी 2025

देखो उसका अभियान


देखो उसका अभिमान
देखो उसका अभियान,
लूट रहा है कैसे वह
जग का सारा संधान
बताकर उल्टा सीधा
बहला फुसलाकर सबको
सुनाकर झूठा झूठा फरमान
देखो उसका अभियान।

सफल होता जाता है
उसके खंजर को नहीं कोई
जब हाथ लगाता है।
कैसा है शैतान कैसा है फरमान
सत्य अहिंसा को नफरत से
गढ़ता जाता है, भरता जाता है
भय का वह भौकाल।
देखो उसका अभिमान।

समझ में आया,
या ना आया
भय का उसका विधान !
संविधान को धताबात कर,
हर लेता सबका ज्ञान ।
बताकर धर्म-कर्म का आख्यान।
गुना है कभी उसका ज्ञान !
चोर उचक्के गुंडे लफंगे ख़ुश हैं!
इनका हो रहा है सम्मान।

-डॉ लाल रत्नाकर 
 
(2)

यह नया दौर है
नया ठौर है,
नई पीढ़ी का
आरोहण है,
अवरोहण के
उठा लिया हथियार
जैसे रंगा सियार
बनता है होशियार!
जनता खो गई
सो गई खाकर मुफ्त आहार
समझ गया है
भैया वह तो करना अत्याचार।
शिक्षा स्वास्थ्य सब
महंगे हो गए।
दंगों के सब भेंट चढ़ गए।
धर्मो के बीच खिंची तलवार।
अभी जातियां आपस में
बांट रही हिस्सेदारी।
उसने उनका बेंच दिया है
सारा कारोबार !
तब जागेंगे, कहां भागेंगे,
जनता है लाचार।
जान गया है राज।
यह डरा हुआ समाज।


-डॉ लाल रत्नाकर

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

हम उन्हें याद कर रहे हैं

 

हम उन्हें याद कर रहे हैं 
जो दुनिया को समझते हैं 
हम उन्हें भी याद कर रहे हैं 
जो दुनिया को नहीं समझते 
मगर हम उन्हें याद नहीं कर रहे हैं 
जो दुनिया को अपनी तरह से समझते हैं। 
हम उन्हें भी याद नहीं कर रहे हैं। 
जो हमें कुछ भी नहीं समझते हैं। 
हम कुछ भी नहीं हैं। 
क्योंकि इन चित्रों के पीछे। 
मैंने श्रम किया है विचारों के साथ। 
मेरे विचारों को जो नहीं समझते। 
मैं उन्हें याद करना चाहता हूं। 
इसलिए नहीं कि वह मेरे मित्र हो जाए। 
केवल इसलिए की उनकी मुलाकात। 
मेरे चित्रों से हो जाए। 
पता नहीं वह आएंगे कि नहीं। 
जिन्हें मैं याद कर रहा हूं। 
मेरा विश्वास है वह भी आएंगे 
जिन्हें मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। 


डॉ लाल रत्नाकर


यह लूट लूट नहीं है यह संस्कृति है

 

यह लूट
लूट नहीं है 
यह संस्कृति है 
यह भ्रष्टाचार 
भ्रष्टाचार नहीं है 
यह संस्कृति है। 
व्यापार की 
बाजार की 
राजनीतिक 
अत्याचार की 
यह लूट 
लूट नहीं है 
यह संस्कृति है 
व्यापार की। 
यह भ्रष्टाचार 
भ्रष्टाचार नहीं है 
यह संस्कृति है 
व्यापार की। 
यह मन की बात 
मन की बात नहीं है 
यह संस्कृति है 
मित्रता की। 
सत्ता के शीर्ष पर 
बैठकर बैठे रहने की 
संस्कृति है। 
यह लोकतंत्र 
लोकतंत्र नहीं है।
शहंशाह की 
की कारस्तानी है।
यह राजधानी 
देश की 
राजधानी नहीं है
यह अंधी जनता की
राजधानी है।


-डॉ.लाल रत्नाकर


उपाय क्या है यह तो हारेंगे ही नहीं

 

उपाय क्या है 
यह तो हारेंगे ही नहीं 
जनता लाख कुछ कर ले 
विपक्षी जीतेंगे ही नहीं। 
कुछ तो करना होगा, 
उसी से बात करनी होगी 
जो यह सब करने में 
अपनी ताकत लगा रहा है। 
उसे कोई ना कोई तो फंसा रहा है 
क्या जनमत यही होता है।
कि घर का वोट भी नहीं मिलता।
यह भी हो सकता है। 
घरवाले अपने मुनाफे के लिए।
घूस ले लिये हों।
और वोट दे दिये हों।
ऐसा भी तो हो सकता है। 
क्योंकि फला है तो मुमकिन है।
ताली और थाली तो बजाए ही थे।
नोटबंदी पर 
सड़क पर कहां आए थे। 
सड़क पर तो वह आए थे।
जिन्हें आज तक 5 किलो, 
अन्न पर खरीदा जा रहा है।
है न मुश्किल उनका हारना।
उपाय क्या है।


-डॉ लाल रत्नाकर


विचारों की खदान में विचार ही नदारद है।

 


विचारों की खदान में
विचार ही नदारद है।
कुकुरमुत्ते की तरह,
मशरूम पर संवाद जारी है
संवाद के हर स्तर पर
ब्राह्मणवाद हावी है।
ब्राह्मणवाद के प्रतीकों में
तेरे त्रिषूल की पवित्रता
अपवित्र कर रही है
नेतृत्व जिनके अपवित्र हाथों में है।
आमजन आहत हैं राहत की आहट से।
घबराहट है तो एहसाष गायब है।
बहस जिस बात पर हो रही है,
वह बात ही यहां गायब है।
निजता पर आंच ना आए।
यह सच उन्हें कौन बताए।
जहां विचारों की खदान खाली है।
आलम बहुत बवाली है।

-डॉ.लाल रत्नाकर


चित्र बोलते हैं


 चित्र बोलते हैं 
इनकी आवाज सुनना
इनकी आवाज बनना 
इन्हें निरंतर आवाज देते रहना 
जब शौक बन जाए 
तब तब अनेक बंधन 
बांधने की कोशिश करते हैं 
कुछ नये ज्ञानवान के
अंकुश के शब्दबाण
झेलते हुए।
फिर फिर कई बार 
उदास भाव से
जब जब वक्त मिले 
रचने लगता हूं,
वह नहीं समझ पाते
और मैं रुक जाता हूं
तब वक्त निकल जाता है
तो जिनकी आवाज दब जाती है 
और मेरे हाथ रुक जाते हैं। 
इसलिए पेन और कागज 
हमेशा अपनी थैले में रखता हूं 
जीवन दायिनी औषधि की तरह 
हमेशा हर समय हर जगह। 
पर वह इस्तेमाल ना हो, 
तो उस अपराध का दोष 
किस किस पर जाता है।
कौन तय करेगा?


-डॉ लाल रत्नाकर


उन्नति के मार्ग

 



उन्नति के मार्ग 
बाधित करने वाले 
क्या तुम्हें पता है।
तुम कर क्या रहे हो।
राह मुश्किल है सबकी,
आसान करो।
अभिमान करो, 
सम्मान करो।
दुनिया बहुत बड़ी है।
और वह यहीं रहेगी
जैसे अब तक रही है।
पलायन का ना 
इंतजाम करो।
ईमानदारी के 
कुछ काम करो।
नहीं तो अब, 
आराम करो!

-डॉ लाल रत्नाकर

क्या कभी आपने सोचा,

 

क्या कभी आपने सोचा, 
आपकी जिंदगी के बाद क्या बचेगा ?
आपकी सोच और आपके कारनामे! 
कौन नहीं जानता है। 
किस किस को अपने झूठे गौरव गान से। 
कब तक बेवकूफ बनाते रहिएगा। 
यह तो तय है की एक दिन। 
दुनिया के सामने 
आपका सच आ जाएगा। 
आपके खूबसूरत झूठ का  
बदसूरत चेहरा 
सामने आ जाएगा, 
आपके रूपहले नकाब उतर जाएंगे।
और आप भी उसी तरह से 
अग्नि के भेंट चढ़ जाओगे। 
जैसे आमतौर पर चंदन घी 
और हवन सामग्री। 
आपके साथ आपकी दौलत, 
शोहरत, नकाब, इज्जत, मान सम्मान। 
सब धुएं की तरह फैल जाएगा।
लोगों की आंखों में जहर भर जाएगा। 
फिर वह लोग जो भक्त हैं 
अंध भक्त हैं आंख मूंदकर।
आपकी स्मृति में मूर्तियां लगाएं, 
भजन गायें पर सच कहां से लाएंगे। 
क्या कभी आपने सोचा, 
आपकी जिंदगी के बाद क्या बचेगा ?
अखंड पाखंड अंधविश्वास।
और नफरती समाज।

डॉ लाल रत्नाकर



शीर्ष पर बैठे हुए हो ?

 

शीर्ष पर बैठे हुए हो ?
क्या इसका तुमको भान है,
संज्ञान है पद प्रतिष्ठा का
या केवल अपना गुमान है। 
अभिमान है ज्ञान का, 
फिर अज्ञान का क्या मान है
ज्ञान और अज्ञान का 
इतिहास है 
उसको बदलकर बोलना,
जनता के धैर्य को तोलना,
असंतोष फैलाकर, 
आग लगाकर
जब यही अभिप्राय है।
जिनको पता है 
'बंच ऑफ थॉट' का 
वही तुम्हारा प्रतिमान है। 
यह कैसी शान है जो,
सर्वदा!
लोकतंत्र का अपमान है। 
जब संविधान महान है।

-डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 28 सितंबर 2024

जिंदगी














जिन्दगी जान ले लेती है दिल की उमंग से
हमारे मजहब सोहबत इज्जत और मोहब्बत

सब बेगाने हो जाते हैं वक्त आने जाने के साथ
हमारे अभिमान के आगे भले सब बौने हो जाते हैं

पर हम लौट नहीं सकते अपने अभिमान से आगे
टूट जाते हैं सियासत के दांव पेंच से जज्बे आखिर

आपकी सख्शियत की आग की लौ जल तो रही है
उन्हें पता है उनकी नियत भी बदली हुयी दिख रही है

और स्वाभिमान के आगे वे असहाय खडे दिखते भी हैं
यही कारण है कि वे जीत तो जाते है पर अंदर से नहीं

जो जल रहे होते तो है पर जलते हुए दिखते नहीं और
वे सामने नहीं आते बल्कि पीछे से ही हमलावर होते है

यहीं हम हार जाते है उस दुष्कर्म और उनके दोहरेपन से
अपराध और छल के कौशल से ही सही वो जीत जाते हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 23 सितंबर 2024

जिसके साथ आपका उठना बैठना है


जरूरी नहीं है 
आप भी उतने ही बुरे हो जाओ 
जिसके साथ आपका 
उठना बैठना है ।
यह भी जरूरी नहीं है कि
जो आप सोचते हो 
वही सही हो 
क्योंकि मुझे लगता है 
जो मैं सोचता हूं 
वह सही नहीं है।
आज के लिए, 
आजकल के लिए 
परिणाम का इंतजार 
गीता में मना किया गया है। 
कर्म पर जोर दिया गया है।
किस तरह का कर्म 
सद्कर्म या दुष्कर्म ?
यह सवाल हमेशा जिंदा रहता है 
उनके मध्य जो सफल दिख रहे हैं, 
असफल होते हुए। 
असफलता की पहचान 
किस तरह से करनी है यह, 
विषय भी उतना ही गूढ़ है।
जितना अच्छे और बुरे का निर्णय। 
सफलता आपके चरण चूम रही है। 
असफल समाज के मस्तक पर। 
तिलक, रक्षा के धागे, जनेऊ।
मिल जाएगा जन-जन तक। 
जिनका मन नहीं मिलता,
सच से रूबरू हुए बिना।
जरूरी नहीं है आप भी 
उतने ही बुरे हो जाओ 
जिसके साथ आपका 
उठना बैठना है.

-डॉ लाल रत्नाकर


जो व्यवस्था आपको लंगड़ा बना दे, पैर काटकर अपाहिज बना दे।


जो व्यवस्था आपको
लंगड़ा बना दे, पैर काटकर
अपाहिज बना दे।
पर काटकर उड़ना रोक दे
भूखे कुत्तों के सामने
बेखौफ छोड़ दे चूसने के लिए
आपको कैसे अच्छी लगती है
जैसे उनको अच्छी लगती है
जिनके पीछे-पीछे आप
अंधभक्त बनकर लगे हुए हो।
कोई तो स्वार्थ होगा
या नि:स्वार्थ लगे हुए हो.
पता तो होगा या नहीं ?
पता है सच और झूठ का
भेद करना भी तो मुश्किल है।
वतन की बात करते हैं।
अपना मन नहीं देखते
अपना तन नहीं देखते
जो खरोचों से भरा पड़ा है,
सिंह के खूंखार पंजों के नहीं
इसी समाज में नफरत और जहर
फैलाने के हजारों हजार मशले
जिन पर न्याय नहीं होता।
- डॉ.लाल रत्नाकर

बुधवार, 11 सितंबर 2024

आवाज में कितना दम होता है


आवाज में 
कितना दम होता है 
यदि वह झूठ नहीं है। 
सच कितनी तेजी से 
देश तक आ रहा है। 
झूठ मंडली में 
कैसी बहस हो रही है।
अनाप-शनाप बक रहे हैं 
संवैधानिक सवालों पर। 
किस तरह के मुंह से।
कोई सुन रहा है क्या? 
सब कह रहे हैं 
बकवास कर रहा है।
आवाज में 
कितना दम होता है ।

-डा.लाल रत्नाकर