रविवार, 17 सितंबर 2023

नौटंकी का मिज़ाज है !

 

वक्त जाते देर नहीं लगती  !
एक वक्त ऐसा भी होता है !
जब वक्त गुजरता नहीं।
और एक वक़्त ऐसा भी होता है,
जब वक़्त कम पड़ जाता है 
कहते हैं वक्त वक्त की बात है।
कहीं धूप्प अंधेरा हैं ?
कहीं आग की बरसात है।
कहीं जलमग्न और कहीं जनमग्न।
हो गया देश का भू भाग है !
तो कहीं धरम का
कहीं अधरम का व्यापर 
और उसी का बाज़ार है। 
यही तो वक्त का मिजाज है।
बिगड़ा हुआ समाज है !
या बिगाड़ा हुआ समाज है !
यह कैसा राजकाज है !
यह किसका राजकाज है !
नौटंकी का मिज़ाज है !

-डॉ.लाल रत्नाकर

बुधवार, 23 अगस्त 2023

आज पूरा मुल्क चुप है


 आज पूरा मुल्क चुप है
और एक व्यक्ति बोल रहा है
बोल ही नहीं रहा है 
तहस-नहस कर रहा है।
मगर किसी के कान पर 
जूं तक नहीं रेंग रहा है।
जो कुछ कर रहा है
किसे अच्छा लग रहा है
हाथ खड़े करो और बताओ
इमानदारी से एक लाइन में 
खड़े हो जाओ पक्ष और विपक्ष
फिर समझ में आ जाएगा
कि अब देश कहां जाएगा।
लोकतंत्र रहेगा या 
राजतंत्र में विलीन हो जाएगा।
दुनिया के वैज्ञानिकों ने
मानवता के नियामको ने
हमारे मुल्क को बेहतर रास्ते पर
ले जाने के लिए बहुत सारे कानून बनाए
समता और समानता का पाठ पढ़ाए
पढ़ना और लिखना सिखाए
ब्राह्मणों के चंगुल से निकाल कर
इंसान बनाए।
अन्यथा बाबा साहब को यह
पढ़ने देते सुनने देते कानों में 
गरम शीशा पिघलाकर डाल देते।
अफसोस होता है 
बाबा साहब को मानने वाले।
आज बाबा साहब के दुश्मनों के
साथ खड़े हुए हैं।
और ब्राह्मणवाद का भगवा लेकर के
तिरंगे के सामने अड़े हुए हैं।


डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 16 अगस्त 2023

बहुत विश्वास से यह कह सकता हूं।



बहुत विश्वास से यह कह सकता हूं।
धोखाधड़ी और बेईमानी की उम्र लंबी नहीं होती।
इसे करने वाला कितना भी बड़ा आदमी हो।
कितने भी बड़े पद पर पहुंच जाए।
लेकिन ईमानदार के सामने वह हमेशा बौना लगता है।
बेईमानी और इमानदारी के मध्य कोई सूक्ष्म अवधारणा नहीं है।
धर्म और अधर्म जैसी ही है।
न्याय और अन्याय के तरह ही ।
उसे चैन नहीं है, छोटी मोटी बेइमानियों से।
वह दुनिया का सबसे बड़ा बेईमान बनना चाहता है।
फर्क इतना है कि सारी दुनिया को बेईमान कहता है।
और बेईमानी का चोंगा पहनकर।
हमेशा ईमानदारी का स्वांग रचता है।
पूरी दुनिया में नाक कटाता घूमता है।
सत्यार्थ प्रकाश के 11 वें समुल्लास में वर्णित,
नाक कटाईए और ईश्वर के दर्शन पाईए जैसा।
देश विदेश में घूम घूम कर इवेंट करता है।
हमें फर्क पड़ता है भले ही आप को न पड़ता हो।
क्योंकि हम विविध प्रकार के टैक्स भरते हैं।
और उन्हीं पैसों पर वह ऐश करता है।
बहुत विश्वास से यह कह सकता हूं।
धोखाधड़ी और बेईमानी की उम्र लंबी नहीं होती।

-डॉ लाल रत्नाकर 

बात उसकी नहीं है



बात उसकी नहीं है,
यह मैं कह रहा हूं हो सकता है गलत हो!
पर मुझे सही लगती है।
नफरत का पौधा बहुत बड़ा हो गया है,
उसके फल उसकी पत्तियां उसकी डालियां 
लोग खूब इस्तेमाल कर रहे हैं।
बिना विचार किए कि क्या यह 
मेरे हित में है या अनहित में।
क्योंकि उस वृक्ष का नाम 
धर्म से जोड़ दिया गया है।
पड़ोसी के फलदार वृक्ष को 
जहरीला बता रहा है।
जहरीले वृक्ष का लोगों को 
अमृत पान कर रहा है।
यह मैं कह रहा हूं हो सकता है गलत हो!
पर मुझे सही लगती है।

-डा लाल रत्नाकर



सोमवार, 14 अगस्त 2023

अशांति फैला रहे हैं।


शान्ति के नाम पर,
अशांति फैला रहे हैं।
कितने कितने तरह से,
देश जला रहे हैं।
योजना बनाकर 
धर्म परिवर्तन 
कराने के नाम पर ?
घर वापसी की 
मुहिम चलाकर।
अन्य अनन्य तरीके 
अपनाकर अन्यथा 
संहार,नरसंहार !
कराकर ?
आग लगाकर !
ऐसी !
आत्ममुग्ध सरकार !
किसे किसे चाहिए!
ऐसी सरकार।

डॉ लाल रत्नाकर

रविवार, 13 अगस्त 2023

जिस देश में नफरत रहती है


एक गीत सुनाता हूं
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में नफरत रहती है
अब तक के वैज्ञानिक परिवर्तन पर
फिर से पाखण्ड का सूत्र ही डाला है,
जिस नफरत को आज तलक
बहुत जतन से वह पाला है।
अंधे बहरे गोबर भक्त यहां 
आसक्त हुए जबसे उसके हैं।


सत्य अहिंसा की हत्या कर,
अट्टहास है वह करता।
संतवेश धारण करके जो,
डाका डाल रहा है।
अपनी मनमानी चला रहा है 
मन की स्मृति को वह 
संविधान का विकल्प बना रहा है।
आधुनिकता की बात तो करता है,
चमत्कार का हॉट लगाकर।
एक-एक को चुन-चुनकर,
वह घाट लगा रहा है।

लोकतंत्र को धता बताकर,
जुमलों से जो भरमाता है।
जनता के मौलिक हक को भी,
कानून बनाकर कैसे वह झुठलाता है।
कौन कहां कितना बोलेगा,
यह भी वह ही तय करेगा।
न्याय और न्यायालय भी,
अब सब होगा उसके अधीन।

नए-नऐ कानून बनाकर,
कितना अब हमको ठगेगा।
जब अपराधी ही जस्टिस होगा,
यह किस किसके गले उतरेगा।
कौन करेगा आवाहन अब,
भारत देश बचाने का।
आंदोलन बड़ा चलाने का,
सबको उसने घेर दिया है।
भिन्न-भिन्न अभियानों से,
उनके ठौर ठिकानों से।

-डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 2 अगस्त 2023

मौन हैं वह आग लगाकर !

मौन हैं वह आग लगाकर !
जलता धूं धूं कर देश !
जलाता कौन ! कौन चुप है?
उल्टे-सीधे बोल बोलकर!
भक्तनुमा भ्रष्टाचारी भी !
बोल रहा है पैनल में !
पैनल, चैनल या सोशल मीडिया पर !
झूठ बोल रहे हो यह कहना!
अब कहना क्या गैरकानूनी है।
चोर चोर चिल्लाना कैसे?
बोलो !
यह कैसे गैर कानूनी है।
न्यायालय को सच और झूठ से,
कैसी आंख मिचौली है।

-डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 26 जुलाई 2023

हमने प्रतीकों का भरपूर इस्तेमाल किया ! - डॉ.लाल रत्नाकर


 
हमने प्रतीकों का भरपूर
इस्तेमाल किया !
अपने मिशन के लिए।
कुछ भी नहीं छोड़ा ?
जिसको हमने अपने,
पाखंड से ना हो जोड़ा !
दलित, पिछड़े, नारी, 
पशु पक्षी, पेड़, पत्थर, गोबर!
पशुबलि, मानवबलि, 
यह कौन सा धर्म है!
छुआछूत, भेदभाव, अखंड पाखंड, 
चमत्कार और  अंधविश्वास?
प्रतीकों के लिए तरह तरह के रूप !
भक्त पर अधिकार नहीं !
यही ब्राह्मणवाद है!
जो प्रतीकों पर आधारित है।
सत्य से दूर बहुत दूर।
असभ्य और असत्य पर सवार!
जिसने प्रतीकों का भरपूर
इस्तेमाल किया !

-डॉ.लाल रत्नाकर

झूठ को सच में बदलने की कला



झूठ को सच में बदलने की कला
सीखे कहां से बेहतरीन!
हम सीख लें हमको जरूरत है कहां।
आप ही को मुबारक हो महारत आपकी!
बाप की या आपकी इज्जत करुं,
जिसने सिखाया सत्य की राह को!
उस पर चलने के लिए !
दो पांव जिसने भी दिए।
गांव के हों या हो नगरीय वाश के !
सबका यह देश है बराबर अभी !
भक्त हैं एक नई खोज किस ब्रह्मांड के,
जो नफरत के रक्त से रंजीत हैं!
अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित हैं!
त्रिशूल बांट बांट कर सूल तो फैला दिए।
ढूंढिए उनको जरा वह कहां गए।
चरितार्थ होती दिख रही है !संतों की वह वाणियां !
"जो तोंको कांटा बोए, वाको बोऐ तू फूल!"
जीवन भी है यह धूल! 
भक्त इसे ना भूल!
हम सिख लें हमको जरूरत है कहां।
झूठ को सच में बदलने की कला !

डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 24 जुलाई 2023

उम्मीद की हर किरण

 


उम्मीद की हर किरण 
एक संदेश लेकर आती है
इस संदेश को ठीक से पढ़ना !
अगर आता है तुम्हें!
तब याद रखना वह हर भरोसा !
जो तुमने किया है या दिया है!
जिंदा रहेगा और उसमें 
प्राण भी होगा !
भविष्य निर्माण का
यदि तुम्हारे भरोसे में धोखा हुआ तो !
क्या समझते हो तुम बस जाओगे।
झूठ नफरत और तिकड़म की चाल से।
मत भूलो यह वक्त झूठ से नहीं चलता।
चलता है सत्य और श्रम की इमानदार उर्जा से।
ओ समझ लो यह निश्चित है कि।
सत्यानाश तुम्हारा भी होगा।
यह तय है।
इससे बच नहीं पाओगे 
कितना भी भागो कितना भी भागो।

- डॉ लाल रत्नाकर

उसके आगे आगे चलकर


उसके आगे आगे चलकर
कितना पीछे हो जाते हैं।
राहत और उपकार के जुमले,
नफ़रत कितना भर जाते हैं।
सोहबत औ संगत उसकी,
अपनों से ही दूरी कितनी,
अंदर अंदर ही भर जाती है।
मर्यादाओं को तार तार कर 
जिल्लत भरी जिंदगी देकर,
लड़ने भिड़ने की ताकत ?
अज्ञात कारणों से ही क्यों?
आतंकवाद से डर जाती है।
आपातकाल भयावह कितना 
कहना कितना मुश्किल है।
यह अहसास हमारे भीतर भी,
दीमक के अस्तित्व सरीखा।
पोर पोर पर चढ़ जाता है।

-डॉ लाल रत्नाकर

आसान नहीं है


आसान नहीं है
उसको समझना
जितना आसान है 
सच को मसलना।
इतना आसान नहीं है 
झूठ से भिड़ना यदि झूठ 
इतना ताकतवर है।
तो सच निरीह ही हो जाएगा।
युग और युगांतर तय करता है 
चाल चलन की पद्धतियां।
वही इतिहास में दर्ज हो जाता है।
जब इतिहास बदलने वाले
अपना इतिहास !
लिखने की तमन्ना रखते हो।
उन्हें कौन बताए इतिहास
सच का ही होता है।

-डॉ लाल रत्नाकर

आंखों का जल सूख गया!

 वह दिन जो अब गुजर गए
मौसम बदल गया फिर भी !
अच्छे दिन की आस लगाए
आंखों का जल सूख गया !

-डॉ लाल रत्नाकर



चलिए मैं कुछ कह रहा हूं


चलिए मैं कुछ कह रहा हूं
प्रतीकों के सहारे बहुत कुछ,
सदियों से सह रहा हूं।
बिना उफ किए हुए आज तक,
जब महात्मा को पढ़ रहा हूं।
तो आंखें खुल रही हैं।
जब हमारा समाज सो रहा है।
रात रात जग कर लिख रहा हूं।
काश इसको पढ़ने वाला!
कोई तो पैदा हुआ होता!
मिट्टी और गोबर से देवता को,
रंग बिरंगा गढ़ रहा हूं।
इंसान से ज्यादा पत्थर को
पूज रहा हूं, प्रसाद और दान,
हक उनका हो गया है।
जो हमें ठग रहा है।
हाथ जोड़कर नमन कर रहा है
पांव छूकर दक्षिणा दे रहा है।
मां बहन बेटियों की इज्जत।
इन पत्थरों के पूजने में।
संभालते हुए असमंजस में।
पूरी पीढ़ी का दंश झेल रहा है।

-डॉ लाल रत्नाकर 

कल ! जब वह तुमसे हिसाब मांग रहे होंगे ?


कल !
जब वह तुमसे
हिसाब मांग रहे होंगे ?
तब क्या कहोगे !
कि लच्छेदार जुमले 
सुन रहे थे !
और मुफ्त के अन्न
खाकर सो रहे थे !
अपढ़ होने के लिए
बेचैन थे या
हिन्दू बनने के लिए !
अभी भी खोए हुए हो
घोर अन्धकार में
उठो जागो !
तुम्हारी आने वाली
पीढ़ी पर खतरा !
मड़रा रहा है !
जागो ! 
वहां से भागो !

-डा.लाल रत्नाकर

चंद चमचों के लिए चमन को रौंदकर हमने


चंद चमचों के लिए
चमन को रौंदकर हमने
किया अच्छा नहीं तो क्या 
तुम हमें माफ कर दोगे।
मैंने स्त्रियों का 
सम्मान कहकर 
किया अपमान उनका तो,
मेरे मन की मलिनता का,
परिचय ही तो दिया है।
फिर भी जो कुछ किया है,
उसका हमको मलाल कितना है
यह जानकर तुम क्या करोगे।
आह भर लो, और क्या करोगे!
इसी को कहते हैं पैशाचिकता !
तो क्या तुम हमको पिशाच कहोगे!
जो भी कहो कहते रहो!
हमारे काम में दखलंदाजी करोगे !
हश्र उसका जो भी हो!
अंजाम तो तुम ही भरोगे।
हमारा क्या करोगे!

-डॉ. लाल रत्नाकर

हमारे हत्यारे का अभिनंदन करने वालों।


हमारे हत्यारे का
अभिनंदन करने वालों।
हम तुम्हें समझ रहे थे
लेकिन तुम !
हमें नहीं समझ पाए थे।
मुझे बार-बार मिटा दो।
मैं मिटने के लिए तैयार हूं।
पर यह ध्यान रखना
मेरी जगह नहीं ले पाओगे?
भले ही हमें बार-बार मिटाओगे।
मेरे चश्मे, मेरी लाठी, मेरी धोती
को प्रतीक बनाओगे,
मेरे अपमान के लिए !
लेकिन जिसे तुम,
सम्मान देना चाहते हो!
कैसे जनता को समझाओगे,
उसे हत्यारे से, 
महात्मा कैसे बनाओगे।

-डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 17 जुलाई 2023

पर वह इतने कठोर होते हैं

 



पत्थर अक्सर !
सुकोमल रचनाओं में इस्तेमाल होता है।
लेकिन उनको पत्थर दिल कहा जाता है।
जो सरल होने का नाटक करते हैं,
पर वह इतने कठोर होते हैं 
जहां पत्थर भी टूट जाए।
अगर उनसे टकरा जाए।
आइए हम ऐसे कुछ लोगों पर
नजर डालते हैं।
जिनकी वजह से 
देश की मर्यादा तार-तार होती है।
उनका कुछ नहीं होता !
बेटियां बचाने उनका नारा है,
जो बेटियो के लिए अभिशाप होते हैं।
और वही सत्ता मौन होती है।
सत्ता में शामिल लोग कौन होते हैं!
किसको नहीं पता है?
फिर भी लोग पत्थरों की तरह चुप है।

-डॉ लाल रत्नाकर

डूब जाना और दूर जाना अपनों के सपनों का!


डूब जाना और  दूर जाना
अपनों के सपनों का!
कारण है 
संज़ोने की कला का ना आना!
यह तो मेरे विचार है, 
पर बात इससे आगे की है!
कहानी दिलचस्प है 
पर बताने में दिलचस्पी नहीं है।
सपने गढ़ने के लिए, 
तोड़ डाले सारे सपने!
मगर जिनको यह लगता है 
कि वह सपने क्या थे ?
उनके लिए कोई जवाब नहीं है।
ना उनके लिए कोई हिसाब है, 
जिनको जिनको दिए हैं।
बेहिसाब अपने श्रम के 
प्रदान और आदान।
नहीं मालूम ?
कभी उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया?
डूब जाना और  दूर जाना
अपनों के सपनों का!

-डॉ लाल रत्नाकर

शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

मेरा नाम मिटा देंगे, हटा देंगे ?



इतिहास की किताबों से,
मेरा नाम मिटा देंगे, हटा देंगे ?
जिस दिन मैं उनकी सच्चाई,
उजागर करूंगा देश के सामने।
अपना जमीर बचाने के लिए।
वह हमारा जमीर बेच देंगे।
हमें कंगाल बनाने के लिए।
कानून लाएंगे नए नए!
सारे देश को बर्बाद कर देंगे।
नफरत फैलाने के लिए!
कुछ भी करेंगे हिन्दू मुस्लिम को!
आपस में लड़ाने भिड़ाने के लिए।
संस्कृति सभ्यता को बर्वाद करके,
आतंक का राज बना देंगे!
गुण्डों को कमान देंगे नफरत को
जन जन तक फैलाने के लिए!
आंख खोलो स्पश्ट दिख रहा है!
देखो सच को सच की तरह!
इतिहास की किताबों से,
मिटा देंगे वह हर पाठ जिसमें!
उनके  कुकर्मो का जिक्र होगा!
और हमारे अच्छे कामों का !

-डॉ लाल रत्नाकर