होता कभी एहसास है !
प्रतिवर्ष,प्रतिमाह, प्रतिदिन
समय का भान होता है क्या?
यदि नहीं एहसास होता है !
हो मानव के रूप में कैसे ?
समझ लें पशुवत आचरण से
आसन्न मस्तिष्क से सन्न हो।
विपन्न हो या संपन्न हो !
मनुष्य तो हो मनुष्यता कहां?
धर्म, कर्म, अधर्म या स्वधर्म !
आस्तिक, नास्तिक, विधर्मी !
कौन है किसको समझ रहे हो!
कभी गंगा में कभी गोबर में
नहा रहे हो पवित्र होने के लिए।
अपवित्र मन धुलता नहीं है !
यदि मनुष्य हो पशु नहीं!
बात करते हो हृदय की
हृदय जब है ही नहीं !
प्रतिघात का आघात क्या
होता कभी एहसास है !
- डॉ लाल रत्नाकर
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