मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

जुल्म की इंतहा होती है


जुल्म की इंतहा होती है 
तानाशाह नज़र तो आये  
दो चार हाथ तो कर लेते 
उसके सामने लूटेरे खड़े हैं 
जिनसे वह वसूलता है हिम्मत 
और बदले में देता है डरावने सपने 
तानाशाह की तरह नहीं 
शुभचिंतक की तरह उन्हें 
जो भूल गए हैं राजधर्म की मर्यादा 
और राजनीती में धर्म के सहारे 
राजनीती करना चाहते है और 
करते हैं दिखावा धार्मिक होने का 
जबकि तानाशाह जानता है ?
तानाशाह का कोई धर्म नहीं होता है 
धर्म उसका हथियार होता है 
संहार के लिए धर्मभीरुओं के !
कैसे लड़ेंगे वह जो जानते ही नहीं है 
धर्म कुछ नहीं होता, होता है अधर्म !
तानाशाह का हज़ारो साल से !
जिससे वह काबिज होता है सत्ता के शीर्ष पर 
और अवाम अंधी हो जाती है जुमलों पर 
जुल्म की इंतहा होती है तानाशाह की। 

डॉ लाल रत्नाकर 


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