जब हम नज़र डालते हैं अपने अतीत पर
पाते हैं विकास के मार्ग और मंजिल !
कोई कम और कोई ज्यादा !
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार !
ज्ञान और विज्ञान का संस्थान !
विकास का आगाज़ अधिकारों का ख़्वाब !
आज अवरुद्ध क्यों हो गया !
प्रतीकों की मार नाच रहा मक्कार !
जुमलों की बौछार वही हो गया औजार !
भूखों की फौज अग्निवीरों का सम्मान !
उलट पलट कर रख दिया जैसे कोई शैतान !
सभी उपक्रम बेच कर कह रहा मेरा देश महान !
यह कैसा है इंसान ?
बिषगुरु जब हो जाता है कोई अंधा इंसान !
गूढ़ रहस्य है उसका जिसमें जहर घुला है !
कैसा है मेरा वर्तमान कैसा होगा भविष्य !
बिषगुरु और विवेकशून्य जब हो जाता इंसान !
- डॉ लाल रत्नाकर
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