सोमवार, 21 अप्रैल 2025

यह मात्र कल्पना नहीं सच है

सच कितना कड़वा होता है कौन नहीं जानता !
--डॉ लाल रत्नाकर 

यह मात्र कल्पना नहीं सच है
सच कितना कड़वा होता है कौन नहीं जानता !
हजारो सालों से आदर्श और धर्म के उपदेश !
वैसे के वैसे ही बने हुए हैं और लोग भी वैसे ही !
संस्कृति के गुलाम बने हुए हैं !
राजा पंडित साहूकार धूर्त मक्कार और दलाल !
दुराचार और बलात्कार डर विद्वेष नफ़रत !
सब के सब यूँ ही बने हुए हैं नेता और समर्थक !
बात करते हैं संविधान की पर मानते नहीं !
जी यही आज़ादी का इतिहास है !
पर न्याय, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार 
के अवसर बढ़ रहे थे, वर्ण व्यवस्था के दबाव !
घट और बढ़ रहे थे समाज बदल रहा था !
फिर 2014 आया देश फिर से आज़ाद हुआ !
नए नारे नए जुमले नए नाम नै शिक्षा निति !
रोजगार का आश्वासन, मुफ्त अन्न ! 
धर्म का मर्म बढ़ता जा रहा था समाज बटता जा रहा था !
हिन्दू मुस्लिम का बुखार चढ़ता जा रहा था !
सरकारी विभाग पूंजीपतियों के हत्थे चढ़ते जा रहे थे !
विश्वगुरु के रूप में नए अर्थशास्त्री बढ़ते जा रहे थे !
वैश्विक आपदा और देश को जुमलों से सुरक्षा !
घंटी घंटा मोमबत्ती अन्धेरा थाली का संगीत ! 

-डॉ लाल रत्नाकर 

कोई टिप्पणी नहीं: