बुधवार, 23 अप्रैल 2025

प्रतीकों के ताल पर,



प्रतीकों के ताल पर,
देश के मुफ्त माल पर, 
थिरक रहा है लोकतंत्र, 
संविधान के गाल पर, 
मल रहा गुलाल है,
कैसा यह कमाल है, 
सपेरे का सवाल है। 
बवाल कैसा हो रहा है, 
हाल कैसा हो रहा है, 
आवाम भी खामोश है, 
मद में मदहोश है,
नशे में भी होश है 
कहां वह बेहोश है 
भाव ताव कर रहा है 
पांव से स्वर्ण मल रहा है 
विमर्श का कहीं पता नहीं, 
आदेश ऐसा कर रहा है। 
जीत हार का गणित, 
सुदूर से वह कर रहा है,
कौन कहां मर रहा है 
कौन किससे डर रहा है 
प्रतीकों के ताल पर,
देश के मुफ्त माल पर,
कौन सवाल कर रहा है। 
कौन बवाल कर रहा है। 
आज के माहौल में।

-डॉ.लाल रत्नाकर

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