डॉ.लाल रत्नाकर
एक कविता हमारी, एक कविता तुम्हारी
जो आज जी के हमारे, जंजाल बन गयी है
एक बेटी थी उनकी, पर बेटा नहीं था ?
बेटे के लिए ही अपनी प्रतिज्ञा थी छोड़ी
जिससे दो दो बेटे और एक बेटी आ गयी
मगर एक को जब विदा कर दिया तब
दोनों अपनी, तरह तब खड़े हो गए !
दूसरे को सौप, सारी संपत्ति दिया !
पर विदा होके भी, वो जुदा न हुयी !
जिनको सब कुछ दिया, वो जुदा हो गया।
एक कविता हमारी, एक कविता तुम्हारी
जो आज जी के हमारे, जंजाल बन गयी है
एक बेटी थी उनकी, पर बेटा नहीं था ?
बेटे के लिए ही अपनी प्रतिज्ञा थी छोड़ी
जिससे दो दो बेटे और एक बेटी आ गयी
मगर एक को जब विदा कर दिया तब
दोनों अपनी, तरह तब खड़े हो गए !
दूसरे को सौप, सारी संपत्ति दिया !
पर विदा होके भी, वो जुदा न हुयी !
जिनको सब कुछ दिया, वो जुदा हो गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें