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डॉ.लाल रत्नाकर
जीत कर भी जहाँ
क्या करोगे ?
आदमी की शक्ल में
जानवर की
करतूत कब तक करते
रहोगे ?
सुधारने की नियत से
नहीं सुधरने की नियत
से इन्सान बनोगे !
तबाही मचाने की
साजिश तुम्हे बरबाद करके
शुरू होती है .
आबाद होने की गारंटी
ही दरअसल,
बरबाद होने की घंटी
की तरह बजती है,
तुम हो की झूठी मुस्कानों
में समेटे अपने मन के
कुत्सित विचार
जिन पर उड़ेल रहे हो
दरअसल यही तुम्हारी
आत्मा का
कलुषित स्वरुप जिसे
तुम्हारा जहर
उन पर
और
उन सब पर
घृणा का अहंकारी
प्रसार करता और कराता
पूरे वातावरण
को दूषित करता
चला जाता है .
पर यह प्रचार
अब बंद करो की
तुम न्यायी हो
सब समझ गए है
कि सफ़ेद 'कफ़न' में
लाश !
नहीं !
लिपटा हुआ
कोई अन्यायी है .
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