बुधवार, 22 सितंबर 2010

यह शहर है

डॉ लाल रत्नाकर 

यह शहर है
यहाँ की हवा
यहाँ का पानी
लगता है
सब कुछ जहर है .

यहाँ की सब्जियां
और फल !
यहाँ की अज़वायीन
और अदरक , सोंठ और हल्दी
सबने अपना स्वभाव बदल लिया है .

यही नहीं
यहाँ के धर्मस्थल ,
लोगों के लिए नहीं
कालोनियों में सिमटकर
रह गए है .
उनके पुजारी
भगवान के कम
मंदिरों के इन्त्ज़ाम्कार
को ज्यादा पूजते है .

कमोबेश यही हाल
विद्या के मंदिरों का है
अंगूठा छापों ने
बनाये है आलिशान
कोलेज जहाँ विद्या बिकती है
कबाड़ की तरह सोने के भाव
कबाडियों ने एक आन्दोलन
और खड़ा किया है
करो मेरे कारोबार का तमाशा
मै तुम्हे चैन से जिन्दा 
नहीं रहने दूंगा !

प्लास्टिक की तरह !

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