मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

आईये स्वागत करें नव वर्ष का

आईये स्वागत करें नव वर्ष का
त्यागें पुराने राग अब वैराग का
अभिमान और गौरवगान का
मेहनतकशों के मान और सम्मान का
हौसला पालें न अब अभिमान के  सैतान का
झांके ह्रदय में सौंदर्य के मान का
काम सबका हो निहायत मानवीय उत्थान का
सृजन की बाध्यता हो आपके अनुरूप
ऐसी नियति हो, विरति हो, त्याग हो
पारदर्शी हो ह्रदय की आग अंगीकार हो
झांकते हो तुम हमारे देश के सम्मान को
ज्ञान के अभिमान को और  कंगलों के शान को
चिर प्रतीक्षा मैं करूंगा अब तुम्हारे शान की
ओछे हुए अभिमान के अ-ज्ञान की
मेरी नसीहत मान लो !
अभिमान में अज्ञानता का भान लो
तुम समय के चोर हो और नसीहतों के ढेर में
बैठे हुए हैवान हो, सैतान हो सैतान हो !
चलो अब गया तुम्हारा साल !
अब नए का संज्ञान लो और अपना जान लो
हम तुम्हारे हों और तुम हमारे हो सको
यह शपथ लेनी पड़ेगी नाव अब खेनि पड़ेगी
है पड़ी मज़हदार में अब इसे उस पार तक
जाने का मंतर जान लो ! पहचान लो !
मेहनतकशों के मान और अपमान का
अंतर ज़रा हम जान लें !
कातिल की भाँती तुम सटे हो 'रचनात्मकता' के मध्य
तुम तो व्यापारी हो भाई आखिर मेरे मांश के
हमने बनाई देह है क्या तुम्हारे ही लिए
हमने जलाई  देह है क्या तुम्हारे ही लिए
मांशाहारी हो तुम ! तुम्हारी करतुते बताती है
अब शहर की आन को तेरी बद्दुआएं लगने वाली हैं
मान जाओ, मान जाओ, बातें दुधारी हैं
हम समझते  तुम्हे ! तुम भी समझ तो जाओ !
अभिमान और गौरवगान का
मेहनतकशों के मान और सम्मान का
हौसला पालें न अब अभिमान के  सैतान का
झांके ह्रदय में सौंदर्य के मान का
काम सबका हो निहायत मानवीय उत्थान का
सृजन की बाध्यता हो आपके अनुरूप
ऐसी नियति हो, विरति हो, त्याग हो !
(डॉ लाल रत्नाकर)
(चित्र ; डॉ लाल रत्नाकर )




कोई टिप्पणी नहीं: