जब जब हमारे बीच वक़्त बेवक़्त !
कोई आकर खड़ा हो जाता है !
वह दुश्मन की तरह नजर रखता है !
मेरी खुशहाली पर और अपनी बदहाली पर
लेकिन मुंह नहीं खोलता !
खुलता नहीं है किसी भी तरह की
अपनी मानसिकता पर कभी नहीं
क्योंकि वह जानता है अपनी मानसिकता
जो उसको सदियों से याद भी नहीं है !
क्योंकि !
सत्य और तथ्यों से वह सदा सदा
छेड़छाड़ करता आया है अपने लिए !
हम तो परेशान हो जाते हैं कि यह मेरा दोस्त है ?
तो यह मेरा दुश्मन क्यों लगता है ?
हम जिसे दोस्त बनाने की जुगत करते है !
वह दुश्मन बनता या बनाता जा रहा है !
किस वजह से वे दुश्मन ज्यादा बढ़ा रहे है।
दोस्त बनाने के नाम पर !
क्योंकि ?
ठग बाबाओं ने लोगों को खूब लूटा है
और तो और बदसूरत किया है
जिसे वो समझते हैं उन्हें खूबसूरत किया है
क्योंकि वे यह नहीं समझते !
कि किस तरह उनका शोषण किया है ?
लेकिन जो उनके भक्त बने हुए हैं
उनका नाम लेने की जरूरत नहीं है ।
विभीषण और विभीषण की ही तरह
खड़े रहना है।
-डॉ लाल रत्नाकर
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