चित्र : डॉ. लाल रत्नाकर |
वह तो ख़ुशी बेचते हैं
जो वतन बेचते हैं
उन पर तोहमत लगा रहे हैं !
यह कैसा वक्त है ?
जो उनपर आरोप लगा रहे हैं !
बेईमानियों से हड़प कर
मुल्क की दौलत !
हमारे ऊपर कानून चला रहे हैं
जो संविधान नहीं मानते ?
हमें कानून बता रहे हैं ?
यह कैसा वक्त है ?
जो हमपर आरोप लगा रहे हैं !
हमारे बनाये हुए देश पर
जो अपना लेबल लगा रहे हैं
हम तो आहत अपने नेताओं से
जिन्हे वे हर तरह से डरा धमका रहे हैं
उनकी आदत उनकी हिफाजत
करने वाले उन्हें कातिल बना रहे हैं !
यह कैसा वक्त है ?
वही उनपर आरोप लगा रहे हैं !
-डॉ. लाल रत्नाकर
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