एक कहानी हम लिखते हैं
चित्र ; डॉ. लाल रत्नाकर |
राजा रानी हम लिखते हैं
असली हत्यारे तो तुम लिख।
आज जमाना ही ऐसा है
हत्यारे को मत हत्यारा कह।
दादागिरी गुंडागर्दी की ऐसी तैसी
मजहब और हिफाजत की भी ।
गलिओं से तो निकल न पाएं
जबकि सत्ता वही चलाएं
देश और दौलत की सरहद तक ।
झूठ फरेब का नाटक करके।
नौजवान को
और किसान को
धोखे का सबक सिखा कर
भारत का सम्मान बढ़ा कर।
उसकी कहानी अब मत लिख
बहुत हो गया जुमला मेरा ?
सबकी जुबानी साहस औ दुस्साहस
करने का माद्दा भी तो आ !
अब तू अपनी सोहरत का
और समय तक तू मत सुन।
-डॉ. लाल रत्नाकर
(यह कविता उन लड़कियों के नाम समर्पित हैं जो खो जाती हैं हमारे मुल्क के शहंशाहों और आतताइयों के अहंकार और वासना में)
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