गॉव की परम्परा शहर आ गयी हैं
'छठ' बिहारियों के पुत्र,पति की रक्षा का पर्व है।
उन्हीं के संग यह इस शहर आ गयी है ।
बहुतेरे त्योहार पहले से ही यहॉ जमे बैठे हैं,
जैसे महानगरों में व्यापारी जमे बैठे हैं,
उन्होंने छठ का एक स्टाल और लगा लिया है।
हमारी नज़र में ये पर्व मात्र बाज़ार के क्रियेशन हैं
पति पर पत्नि का बोझ इतना है ?
कि वह सारी परम्परायें ओढ़कर पर्व मनाने का भी बोझ ढो रहे है।
ये वह हैं जो सारे भाषणों में पाखंड की निंदा कर रहे होते हैं ?
और इधर वही पाखण्ड की परम्परा का छठ मना रहे होते है
यह वही हैं जो पाखंड को परवान चढ़ा रहे होते हैं ।
-डॉ लाल रत्नाकर
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