वक्त वरण का
आ गया है।
किसका वरण ?
प्रतिघात का ?
पक्षपात का ?
या सहोदर और
हिंसात्मक व्यवहार का ?
यूं समझ लो
आज के भ्रमजाल का !
विवेक के संग धर्म का !
अधर्मियों के मान या
अभिमान का !
वरण किसका करोगे!
भक्त का या सशक्त का !
या अग्यात का!
वरण किसका करोगे
संविधान का या
किसी बेईमान का!
हम नहीं तुम भी नहीं ?
देश का या स्वदेश का !
वरण की प्रक्रिया पर।
सोचकर कर वरण ?
वरण कल का !
डा.लाल रत्नाकर
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