आप बनाते रहिए
इन खंडहर नुमा आवासों को
मनुष्य के रहने लायक
जिससे कल जो आए
वह थोड़े दिन मनुष्य बन जाए
कहीं चर न जाएं मनुष्यता
क्योंकि प्रकृति में ही
बसती है मानवता।
क्योंकि वह
मानवता को त्याग कर
जिस पद को धारण किया है।
उसे मानता है ईश्वर ने दिया है
और रात दिन
करता है अपराध।
सुबह शाम ईश्वर को
नतमस्तक होकर।
अपने अपराध पर
धर्म का लेप कर लेता है
और अधर्म लेप से छुप जाता है।
डा लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें