रंग बिरंगा चोला तेरा
रंग बिरंगा चोला!
शहर शहर और गांव गांव में
फैला तेरा डोला;
गांव है कितना भोला!
धरती पर भौकाल बनाकर
लूटा है बहुरूपिया बनकर
सदियों का संघर्ष हमारा
जन-मन को सपने दिखला
जनता को खूब झांसा देकर।
ठग ली सारी दुनिया।
धरती को धता बताकर।
दुह लो इंजेक्शन देकर।
रक्त से उसके रस दुहकर।
ठांठ बनाकर गोशाला में,
जन जन को धता बताकर।
गोबर गोधन,गोमूत्र आदि पर
लाक लगाकर ठग लो।
रंग बिरंगी चोला तेरा
रंग बिरंगी चोला!
है कितना बड़-बोला!
- डॉ लाल रत्नाकर
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