गुरुवार, 29 सितंबर 2022

हमें तो अपने मजहब का ही बताता है।







कौन कहता है नफरत की वजह मजहब है,
हमें तो अपने मजहब का ही बताता है।
धूर्तता और चालाकियां मजहब की,
जरूरत नहीं होती जनाब।
यह तो व्यापार की शरारत है, 
जिसे मजहब में हमेशा हमेशा से 
इस्तेमाल किया जाता रहा है।
यही तो नफरत और अलगाववाद का तकाजा है,
मजहब का रास्ता उसके लिए सबसे माकूल है।
माकूल है उस नफरत के व्यापारी के लिए,
जो मजहब का बाजार सजाता और लगाता है।
आइए विमर्श करें नफरत से दूर रहने पर,
धर्म तो आचार है विचार है सदाचार है।
मजहब की मार से जो बीमार है,
आइए उसके संग खड़े हों उसके उपचार में।
बाजार में, समाज में और परिवार में,
नफरत का जहर फैलने ना दें पूरे शहर में।


















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