शनिवार, 9 मार्च 2024

दिमाग़ पर क़ाबिज़ जो है, मिज़ाज पर नज़र उसकी,

 

दिमाग़ पर क़ाबिज़ जो है,
मिज़ाज पर नज़र उसकी,
कैसे कह दूँ ख़बर नहीं !
बेख़बर जो दिखते है।
ख़बर आज वही बनते है।
चमन को रौंदने वाले !
बेरहम नहीं होते क्योंकि,
मस्तिष्क पर सवार रहते हैं!
मज़हब की बात करते हैं!
पर मज़हबी नही होते ?
मज़हब तुम्हारे धर्म मे ,
कहीं नज़र तो नहीं आता !
कहते हो खुदा ख़ैर करे !
ईश्वर सबका भला करे !
पर तुम तो भेदभाव करते हो !
यह जहर जो तुम्हारे भीतर है,
कहॉ से आया है नासूर तेरा ?
जो दिल में संजो के रखते हो,
जुमलों के भजन करते हो !
शरीफ़ बनते हो ज़ुबान में जहर रखते हो !
मेरे मसलहे पे दखल रखते हो !
ख़ुद तो निज़ाम पर बैठे हो !
हमको परवर दिगार कहते हो !
हमको अल्लाह खुदा कहते हो,
ख़ुद तो मनु की तरह रहते हैं ?

-डॉ लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं: