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चित्र कुमार संतोष : संग्राहक - सुश्री माधुरी दीक्षित |
मनुष्यता विलुप्त हो गयी है
जुमले और झूठ के कमाल से
पूंजीपतियों के माल से सत्ता पे
सत्ता के कमाल से मालामाल
जो हुआ है वह मनुष्य है क्या ?
कौन तय करेगा उसकी जिम्मेदारी
न्यायालय !
व्यापारी का राजा से
सत्ता का व्यापारी से
कैसा सम्बन्ध हो !
यदि दोनों व्यापारी हों !
लेनदेन जारी हो !
कोई भी लाचारी हो !
खाली बाज़ार है
खरीददार नदारद है ?
बेहाल और बदहाल है !
देश का यही हाल है !
-डॉ लाल रत्नाकर
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