जो पसंद था ।
वह मेरे करीब नहीं था।
करीब तो वह भी नहीं था।
जो नापसंद था!
उसकी नापसंदगी में,
मेरा कोई दोष नहीं था,
उसके जो दुर्गुण थे ।
उसी से लोग उसे
अच्छा मानते थे।
उनके लिए वह अच्छा था।
जो खुद अच्छे नहीं थे।
यह बहुत विचित्र सवाल था।
सवाल का जवाब हमेशा।
मेरा बहुत अच्छा होता था।
लोग जवाब को अच्छा कहते थे।
लेकिन न जाने क्यों ?
हमसे खुश नहीं होते थे।
मैं मन ही मन सोचता था।
अच्छे को अच्छा कहना।
बुरे को बुरा कहना।
कैसे अच्छा नहीं है।
जो लोग इसका जवाब देते थे।
उनका कहना था।
कोई जरूरी है सब कुछ आपको कहना।
बात तो उनकी भी सही थी।
पर मुझे लगता था।
झूठे के सामने क्यों चुप रहना।
हालात देखिए!
पूरा देश चुप है।
झूठों के सामने।
-डा.लाल रत्नाकर

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