रविवार, 14 नवंबर 2010

बाल दिवस पर

डॉ.लाल रत्नाकर  
ये दीवार ये मंजर 
इनकी बेचारगी और इनका बचपन 
हमने गढ़े है.
इनके हालात ऐसे ही रहे 
यह साजिश जिसकी 
उनकी ताकीद उनकी इबाबत में 
मशगूल ,
इस देश का दलित 
इस मुल्क का पिछड़ा 
और पसमांदा,
बस अपनी हिफाज़त में 
इनके हालात का 
मालिक बना बैठा 
स्कूल और कालेजों की 
चारदीवारी में इनके हालात 
तो बंद ही है,और 
एकलब्य तो कहने को है 
आज ''द्रोनाचार्यों'' की फ़ौज 
खड़ी है,
सत्ता की खातिर 
बदलते हुए आचार क्या देखा आपने 
इनकी तस्वीर में ओ गम नहीं 
जो आपके मन में है 
ये जानते ही नहीं है / इनको पता ही नहीं 
कि इनके हालात इतने बुरे क्यों है !




1 टिप्पणी:

आशीष मिश्रा ने कहा…

सही कहा .........आज कई मासुम उपेक्षाओं के शिकार है.....
मैने भी आज एक ऐसी ही कविता लिखी है अपने ब्लॉग पर-sarovar.tk