सोमवार, 23 मई 2011

तौबा

डॉ.लाल रत्नाकर
 
चलो मैं तो तुम्हें
वहाॅं तक ले चलूंगा
जहां से तुम खुद तौबा कर लोगे
हमारी हदों में घूसने की हिम्मत
और हिमाकत की है तूने
तुम्हे हर हाल में तुम्हारी
हरकत की सजा देनी है
चलो मैं सब्र करता हूॅं अभी
पर ये भूलना
हमारा भारी है, तुम्हारे पूर्वजों ने
हमारे पुरखों की
भले की हो चाकरी
सोहरत हमारी
देखने की आदत डालो
हमने हासिल की है
सभ्यता असभ्यता से
इस पर हमारा ही अधिकार है
मेरे अधिकारों के रक्षक बनो
ये तो मुझे बरदास्त है
पर अपनी रक्षा की बात भी करोगे
तो ये मैं सहूं संभव नहीं
कोप भाजन बनोगे उनके भी
जिन्हें अपना समझते हो
इसीलिए तो कहता हूॅं
वही करो जहां तक
तुम्हारी सीमाएं हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: