गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

प्रवृत्ति

डॉ.लाल रत्नाकर 

उनसे उम्मीदों के 
पहाड़ सरीखे अरमान लिए 
चल रहा था न कोई प्रशिक्षण था 
और न ही विश्वास की कमी 
मेहनत और हाड तोड़ मेहनत 
कर रहा था इस उम्मीद में 
की ये सब अपने हैं 
नहीं समझ रहा था की 
ये पराये नहीं है पर 
पहाड़ों सी उसकी मेहनत 
उनके ठगने के छुपे हुए आचरण ने 
जब उसे खोखला कर दिया 
और वह उलाहने के लायक भी 
नहीं रहा तब तरस खाने के अलावा 
उसके पास बचा क्या था ?
जब यह सवाल उनसे पूछा 
जो सारे षड्यंत्रों को रचे था 
सदियों के स्थापित बेईमानी 
के मानदंडों पर आधारित 
अहंकारी कुत्सित मानव का 
जिसे ही वास्तव में धरती पर 
चर्चित 'दानव' के रूप में देख रहा था 
पर उसकी शक्ति क्या इस दानव 
के दलन के लायक है
विचार तो इसपर करना है .
क्या इतने दानवों के एक साथ 
दलन का 'महापर्व' आयोजित हो सकेगा  
विचार तो इसपर करना है .

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