शुक्रवार, 17 मई 2013

यह ब्रांडेड है,

पहचानने की जरूरत नहीं  है
यह ब्रांडेड है,
ब्रांड कैसा है आपको समझना होगा
इसके पहचानने में वक़्त वर्वाद करना
शायद आपका शगल
अपनी तरह का हो
पर शंका तो हमें भी है की
क्या आप उतने ही ब्रांडेड हो
जितना विज्ञापन में आपको
दिखाया/समझाया गया है।
वक्त इसे ही कहते हैं जिसकी वजह से
बीते हुए कल का मूल्याङ्कन किया जाता हो
पर जब वक़्त निकल जाता है तो
मूल्याङ्कन किसी काम का नहीं होता
अवसरवाद के अनेक 'उत्पाद'
हमने भी इस्तेमाल किये हैं और
कई तो 'सेम्पल' के रूप में मेरे स्टोर में
अभी भी पड़े हैं,
महोदय भरोसा करिए
पहचानने की जरूरत नहीं  है
यह ब्रांडेड है,
ब्रांडेड की कमियाँ/खूबियाँ अब
भले बदल गयी हों
पर हम तो 'बाटा' और 'टाटा'
के जमाने के ब्राण्ड जानते हैं
हो सकता है आपके
प्रोफेसनल दौर के ब्रांड आयातित हों
उदारीकरण के बाज़ार पर
हावी हों, मुनाफे का हिसाब
उतना ही तकनीकी हो
पर वे भारतियों के इस्तेमाल में
उतने उपयुक्त नहीं हैं
जितने पुराने ब्रांड थे।
नए ब्रांड इस्तेमाल में तो हैं
और आचरण भी
पर इस आचरण का असर
क्या उतना ही उपयुक्त है
जिस तरह के आचरण की
पहचान करने की जरूरत है .
पहचानने की जरूरत नहीं  है
यह ब्रांडेड है।
चित्र एवं रचना; डॉ . लाल रत्नाकर 











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