मंगलवार, 30 मई 2017

इतिहास का धर्म

इतिहास का धर्म
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-डॉ.लाल रत्नाकर
डॉ. लाल रत्नाकर का चित्र 

अगर मैं इतिहास लिखूं तो लिखूं किसके लिए
क्या वह मेरा लिखा इतिहास पढेंगे ?
क्योंकि वह तो पाखंडियों का लिखा हुआ
इतिहास पढ़ने के आदी हो गए हैं
जिसमें उनके खिलाफ लिखा गया है
और जानबूझ कर लिखा गया है
कि यह अपराधी हैं
दरअसल इतिहास लिखने वाले ही
असली अपराधी थे
जिन्होंने सही इतिहास नहीं लिखा
जिससे आने वाली पीढ़ियां
यह न जान सके कि
उनका वास्तविक इतिहास क्या था
और उसे वह गुमराह कर सके
जिसे वह निरंतर अपना इतिहास मानता रहे
मेरे यहाँ के इतिहास के एक प्रोफेसर ने कहा कि
मेरठ की क्रांति का इतिहास ही गलत है
मंगल पांडे को न जाने कहां से लाकर वहां बैठा दिया
जबकि वह तो पूरा आंदोलन ही गुर्जरों का था।
मैं तो इतिहास का विद्यार्थी नहीं हूं
कला का विद्यार्थी होने के नाते
मैं ऐसे कला इतिहासकारों को जानता हूं
जिन्हें कला के इतिहास का ABCD नहीं आता
और वह कला पर शोध और शोध कराते जा रहे हैं
उन शोधार्थियों का क्या होगा
जो उनके साथ कला पर शोध कर रहे हैं
ऐसे लोग एक दो नहीं पूरे इस महामंडल पर
व्याप्त हैं जिनकी शोध कथाएं
न देखी जीती हैं ना पढ़ी जाती हैं
जो केवल और केवल उतारी जाती है
ऐसे इतिहासकारों ने हमारे देश का
इतिहास लिखा है जिसमें बहुत कुछ छोड़ दिया है
जो कुछ उन्होंने छोड़ दिया है
अब उन्हें कौन लिखेगा ?
क्या आप पढ़ोगे ?
यदि उन सबको लिखा जाए
जिसको छोड़ दिया गया है।
इसलिए अब नया इतिहास लिखना होगा
जैसे भाजपा के लोग अपने
गौरव का इतिहास लिख रहे हैं
जिनका इतिहास में जिक्र है कि
आजादी के लडाई के समय
यह अंग्रेजो के साथ थे
या दुश्मनों के साथ है
तब भी और अब भी !
अगर मैं इतिहास लिखूं
तो लिखूं किसके लिए
क्या वह मेरा लिखा इतिहास पढेंगे ?

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