गीत हमने तो
तुम्हारे बहुत गा लिए।
इस गीत के बदले
हमारे रूप बदले
समय के साथ
बहुत कुछ पा लिया।
करीब उनके नहीं आए
तो वह नहीं पाया।
समय का फेर ऐसा है
अकल का ढेर ऐसा है
मेरा संसार कैसा है
यह घर-बार कैसा है।
यह संसार कैसा है
यह व्यापार कैसा है।
-डॉ. लाल रत्नाकर
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(2)
फिर जला दिया !
फिर जला दिया !
प्रतीकात्मक तरीके से !
किसको !
बुराई को !
या
बुराई के प्रतीक को !
घास फूस
लकड़ियों
गोबर
के ढ़ेर को
आग के हवाले
कर दिया!
एकबार फिर
वर्ष भर के लिए
यह विचार भर दिया
होलिका
नाम की महिला
को जला दिया।
परम्परा और पर्व
की वजह से।
वाह !
यही परम्परा
उन्हें
बदलने नहीं दे रही है।
जिन्हें फंसाने के लिए
गढ़ी गई हैं
यह कथा !
मूर्खों
जश्न मनाने के लिए
महिला की बलि ?
रंग
भंग
शराब
पकवान
यह सब
तुम्हारे
शोक के बदले
जश्न में
तब्दील कर दिया है।
पगले!
डॉ.लाल रत्नाकर
(2)
फिर जला दिया !
फिर जला दिया !
प्रतीकात्मक तरीके से !
किसको !
बुराई को !
या
बुराई के प्रतीक को !
घास फूस
लकड़ियों
गोबर
के ढ़ेर को
आग के हवाले
कर दिया!
एकबार फिर
वर्ष भर के लिए
यह विचार भर दिया
होलिका
नाम की महिला
को जला दिया।
परम्परा और पर्व
की वजह से।
वाह !
यही परम्परा
उन्हें
बदलने नहीं दे रही है।
जिन्हें फंसाने के लिए
गढ़ी गई हैं
यह कथा !
मूर्खों
जश्न मनाने के लिए
महिला की बलि ?
रंग
भंग
शराब
पकवान
यह सब
तुम्हारे
शोक के बदले
जश्न में
तब्दील कर दिया है।
पगले!
डॉ.लाल रत्नाकर
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