रविवार, 6 अगस्त 2017

जहां नीयत भी अशुद्ध है !


वाह।
यह भी गजब का युद्ध है
जहां नीयत भी अशुद्ध है
हिम्मत हमारी हारने की
जीत में बदल रही है
आवाज मेरी कर्कश जो
गीत में बदल रही है
एहसास उम्र का अब
एहसास होने लगा है।
कितना यहां तुम्हारा है
अब तय हो रहा है
अनुभूतियों के बदले
अनुभूतियों को सह ले
है वक्त का तकाजा
बदला हुआ समय है
चुपचाप तू निकल ले
कुरीतियों को सह ले
यह भी गजब का युद्ध है
जहां नीयत भी अशुद्ध है।
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डॉ. लाल रत्नाकर

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