शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

उनसे भी उतनी ही मोहब्बत है।

चित्र ; डॉ.लाल रत्नाकर 

हमें उनसे भी उतनी ही मोहब्बत है।
जो हम से जी भर कर नफरत करते हैं।
आपको नहीं लगता नफरत करने वाला ।
मोहब्बत करने वाले से ज्यादा याद करता है।
मोहब्बत तो मोहब्बत होती है।
नफरत भी कोई चीज होती है।
जो ऐसे ही नहीं हो जाया करती।
हम ऐसे किसी व्यक्ति से
नफरत नहीं करते।
जो नफरत के लायक नहीं है।
जो नफरत के लायक है।
उससे मोहब्बत करने का माद्दा?
कम से कम सब में नहीं है।
क्योंकि उसकी नफरत में ऐसी आग है।
जो उसे तो जलाती रहती है।
मगर उसे यह नहीं लगता कि वह जल रहा है।
झूठ और फरेब के तमाम कूड़ा करकट उसे ढके हुए हैं।
तभी तो वह धूं-धूं करके जल रहा है।
और उसकी आंच से न जाने कितने हाथ सेंक रहे हैं।
हम उसे मोहब्बत नहीं सिखा सकते।
वह हमें नफरत नहीं सिखा सकता।
क्योंकि उसकी जमीर उसे इजाजत नहीं देती शराफत की।
हमें हमारी जमीर इजाजत नहीं देती नफरत की।
उसे इंसान बनाने का जिम्मा 
हम नहीं ले सकते 
क्योंकि उसमें इंसानियत का लेशमात्र भी लक्षण नहीं है।
तभी तो हमेशा वह व्यापारी रहता है।
और यह भ्रम पाले रहता है।
कि वह बहुत भला इंसान है।
डॉ.लाल रत्नाकर

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