रविवार, 11 नवंबर 2018

उम्मीद बाक़ी है ?


धूप्प अँधेरा है।
उम्मीद बाकी है।
तेल की धार !
घी में उतर गयी है !
और घी देसी घी में !
पेट्रोल की कीमत जोड़ दी गयी है।
आम आदमी की जिंदगी !
उत्सवमय हो गयी है !
हर हाथ को काम और घर की चाभी।
इन विगत कुछ सालों में।
रसोई गैस घर घर पहुंचा दी गयी है।
बुलेट ट्रेन से !
इसमें कुछ भी झूठ नहीं है !
क्या धूप्प अन्धेरा नहीं है।
कितने दिए जलाओगे !
इंसानों के खून से !
सरजू के तीरे और गुजरात में।
दिए जलाकर और मूर्ति लगाकर।
फिर झुठला दिया है !
अपनी नाकामियों को।
राम को ओढ़ा दिया है।
एक दिया राम के नाम का।
और बाकी दिए ?
धूप्प अन्धेरा है।
कितने दिए जलाओगे !
-डा.लाल रत्नाकर
(-सांस्कृतिक साम्राजयवाद के खिलाफ !)

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