मंगलवार, 3 नवंबर 2020

जुमले को हथियार बना लिया है.

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शुरुआती दिनों में हमें
हमारा गांव और
हमारे आसपास जो
फैला हुआ संसार था।
जिसमें नाना प्रकार का
एहसास और दृश्य था
उनमें विविधता थी।
और मर्यादित काम भी।
यद्यपि शिक्षा का
इस तरह का व्यापार नहीं था
स्कूल था लेकिन
लड़कियां पढ़ने नहीं जाती थी
धीरे-धीरे पढ़ने का चलन हुआ
और छूटता गया
मेरी स्मृतियों का गांव।
जहां माऐं तेल में लथपथ
बुकवा लगा कर के हम सबको
संघर्ष के लिए तैयार करती थी
और हम कंधे से कंधा मिलाकर
सहारा देते थे एक दूसरे को।
पता नहीं आज
क्या होता होगा।
आज भी होता होगा।
लेकिन शहरी जिंदगी में
यह सब बदल गया है
यहां आ गया है व्यापार।
यहां पर काम नहीं है
आदमी बहुत बदल गया है।
बदला हुआ आदमी
आदमी नहीं लगता।
आदमी की तरह लगता है।
मुझे याद है बचपन में
घर गृहस्ती के काम के बाद भी
हमें जितना समय मिलता था
घर परिवार से।
उससे आज मेहनत करने की
ताकत बनी हुई है
मन और मस्तिष्क से भी
तन और ताकत से भी।
लेकिन जब पता चला।
यह सब पिछड़ापन है।
एडवांस होने के लिए।
काम करने की जरूरत नहीं होती
बल्कि उसके लिए मिथ्याचार
जरूरी है
और व्यापार जरूरी है।
व्यापार के लिए बाजार जरूरी है
और बाजार के लिए
बाजारवाद जरूरी है
तभी तो सत्ता के शीर्ष पर बैठा है
व्यापारी।
सब लोग कर रहे हैं ।
उसकी तरफदारी।
बाजारू होना
अच्छा नहीं माना जाता था
हमारे बचपन में।
बाजार और बाजार के
हिसाब से :
हमें तैयार होना पड़ता था।
बाजार डरावना लगता था।
क्योंकि वहां खुशियों का
सामान बिकता था।
उन खुशियों को खरीदने के लिए
इजाजत लेनी पड़ती थी
क्योंकि उसकी कीमत देनी पड़ती थी।
पहले जरूरतें कम थी
और काम ज्यादा था।
आज जरूरते ज्यादा है।
और काम कम है।
आज की तरह
लाइलाज मर्ज हैं।
इलाज की जरूरत है
और इलाज है नहीं।
क्योंकि हमने एडवांस होने की
उन सारी जरूरतों के पीछे
पागलों की तरह
भागना शुरू कर दिया है।
और अंत में
बीमार होकर इलाज में
ना जाने क्या-क्या कर !
बचे रहना चाहते हैं।
बाजारू बीमारियों से।
तभी तो फिर से।
हमें धकेला जा रहा है।
उन्हीं पुरानी परंपराओं में
जहां से निकलकर
विज्ञान के सहारे
यहां तक पहुंचे हैं
बुढ़ापे में
क्या वह गांव बचा होगा।
जहां गुजारे थे हमने बचपन।
याद आते हैं
गांव में गुजारे हुए दिन
और ननिहाल की मस्ती
जो जिंदगी का
आधा हिस्सा होता है।
नाना नानी मामा मामी।
सब ज्यादा अपने होते हैं।
शायद।
आज भी होते होंगे।
बहुत कुछ है लिखने के लिए
कहने के लिए
करने के लिए
मगर वक्त कहां है
सब कुछ उसने ले लिया है
वादा करके अच्छे दिन का
जुमले को हथियार बना लिया है
हथियार को व्यापार बना लिया है।
युद्ध नहीं करता।
जीत जाता है बिना लड़े हुए।
क्योंकि लड़ाई को।
व्यापार बना लिया है।
डॉ लाल रत्नाकर

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