कौन बेजार है कौन लाचार है।
कौन तय करेगा !
यह किसकी सरकार है।
व्यापार और बाजार का,
सरकार और साहूकार का।
देश और सत्ता का।
व्यापार ही व्यापार है।
क्या यही सरकार है।
देश अब बाजार है।
यहां खुला कारोबार है।
आम आदमी बीमार है।
आत्मनिर्भर बना दिया।
सबको शमसान पहुंचा दिया।
यही तो विचार था।
देश लूटने का विचार था।
वह सामने आ गया।
अब अंधकार छा गया।
रोशनी की उम्मीद में।
देश पूरा सो गया।
डा लाल रत्नाकर
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