तुम मानवता के शत्रु हो!
दानव हो मनुष्य के रूप में
वह हमें नजर नहीं आता !
वह निरंतर दानवीय
काम करता रहता है।
यही कारण है कि हम
उसके कुकर्मों को,
पहचानने में विलंब करते हैं।
कई बार पहचान कर भी
भ्रम में शरीक रहते हैं।
जानकार विशेषज्ञ बनकर।
अंजाम देते हैं ऐसे ऐसे।
डॉ लाल रत्नाकर
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