-डॉ.लाल रत्नाकर |
एक वक्त ऐसा भी होता है
जब वक्त गुजरता ही नहीं है ।
और एक वक़्त ऐसा भी होता है,
जब वक़्त कम पड़ जाता है,
कहते हैं वक्त वक्त की बात है।
कहीं धूप्प अंधेरा है,
कहीं आग की बरसात है।
कहीं जलमग्न और कहीं जनमग्न।
हो गया भू भाग है !
तो कहीं धरम का-कहीं अधरम का
व्यापर और उसी का बाज़ार है।
यही तो वक्त का मिजाज है।
यह नया बिगड़ा हुआ समाज है !
यह कैसा राजकाज है,
यह कैसा राजकाज है!
-डॉ लाल रत्नाकर
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