विचारों की खदान में
विचार ही नदारद है।
कुकुरमुत्ते की तरह,
मशरूम पर संवाद जारी है
संवाद के हर स्तर पर
ब्राह्मणवाद हावी है।
ब्राह्मणवाद के प्रतीकों में
तेरे त्रिषूल की पवित्रता
अपवित्र कर रही है
नेतृत्व जिनके अपवित्र हाथों में है।
आमजन आहत हैं राहत की आहट से।
घबराहट है तो एहसाष गायब है।
बहस जिस बात पर हो रही है,
वह बात ही यहां गायब है।
निजता पर आंच ना आए।
यह सच उन्हें कौन बताए।
जहां विचारों की खदान खाली है।
आलम बहुत बवाली है।
-डॉ.लाल रत्नाकर
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