चित्र : डॉ.लाल रत्नाकर (डिजिटल स्केच) |
मेरी शोहरत पर पर्दा डालो!
मेरा अपमान जितना चाहो कर डालो!
मगर यह ध्यान रहे ?
भले ही जमाना बदल डालो!
शोहरत ऐसे ही नहीं मिला करती!
मेहनतकश की नियत यदि सच्ची हो।
अकारण जो उसे मेहनत नहीं कहते!
मशक्कत करने वालों को !
मेरा अपमान जितना चाहो कर डालो!
मगर यह ध्यान रहे ?
भले ही जमाना बदल डालो!
शोहरत ऐसे ही नहीं मिला करती!
मेहनतकश की नियत यदि सच्ची हो।
अकारण जो उसे मेहनत नहीं कहते!
मशक्कत करने वालों को !
जिस युग में सराहा नहीं जाता।
वह है जमाना काहिलों का !
जिसे कभी सराहा ही नहीं जाता।
भले ही ख्वाब पा लो तुम?
कि तुम ने पा लिया जन्नत?
जिसे मांगा था तुमने मानकर मन्नत!
मेरी शोहरत पर परदा डालो।
भले ही कितना भी कीचड़ उछालो?
मेरे श्रृंगार को तुम रौंद डालो।
तुम्हें तब भी नहीं मिलती है।
रचनात्मकता !
जिससे मन में शांति रचती है।
जिसे कभी सराहा ही नहीं जाता।
भले ही ख्वाब पा लो तुम?
कि तुम ने पा लिया जन्नत?
जिसे मांगा था तुमने मानकर मन्नत!
मेरी शोहरत पर परदा डालो।
भले ही कितना भी कीचड़ उछालो?
मेरे श्रृंगार को तुम रौंद डालो।
तुम्हें तब भी नहीं मिलती है।
रचनात्मकता !
जिससे मन में शांति रचती है।
-डा. लाल रत्नाकर
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