क्यों तुम्हें डर लगने लगा है
चित्र ; डॉ.लाल रत्नाकर (डिजिटल) |
वही डर गए हो
जहां से तुमने हुंकार भरी थी
क्या सचमुच तुम्हें डर लगने लगा है
मैं देखना चाहता हूं
वास्तव में जो लोग तुम्हें जानते हैं
उन्हें विश्वास नहीं होता
कि तुम वास्तव में डर गए हो
डर किसी और से नहीं लगता
डर तो अपने भीतर से दबोच लेता है
क्या तुम्हारे भीतर कोई डर
प्रवेश कर गया है?
वास्तव में तुम डर गए हो।वास्तव में जो लोग तुम्हें जानते हैं
उन्हें विश्वास नहीं होता
कि तुम वास्तव में डर गए हो
डर किसी और से नहीं लगता
डर तो अपने भीतर से दबोच लेता है
क्या तुम्हारे भीतर कोई डर
प्रवेश कर गया है?
क्योंकि तुमने सच को अपने करीब।
आने ही नहीं दिया था।
और अब सत्य दूर बैठा।
तुम्हारे असत्य से खूब प्रसन्न है।
कि तुम्हारा डर सत्य से नहीं।
भयभीत तुम्हारे असत्य से ही है?
और असत्य से सत्य को
नहीं बदल सकते ?
और झूठ से दुनिया नहीं बदल सकते।
बदल सकते हो तो केवल
और केवल अपने रंग रूप
अपने अरमान और अपनी शान।
अगर तुम्हें लगता है वास्तव में,
कि तुम बदलना चाहते हो देश।
तो बदलो अपने झूठ और पाखंड के स्वभाव।
-डा.लाल रत्नाकर
बदल सकते हो तो केवल
और केवल अपने रंग रूप
अपने अरमान और अपनी शान।
अगर तुम्हें लगता है वास्तव में,
कि तुम बदलना चाहते हो देश।
तो बदलो अपने झूठ और पाखंड के स्वभाव।
-डा.लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें