चलिए हम मान लेते हैं की वह बहुमत से जीतकर आये हैं !
क्यों न माने की उन्होंने झूठे वादे और झूठे सपने दिखाए हैं !
कौन करेगा इनकी जांच की इन्होने देश को कितना लूटा है !
देश की सारी एजेंसियों पर इन्होने अपने पहरुए बिठाये हैं !
और तो और इन्होने संविधान के खिलाफ जब देश चलाये हैं !
कौन कहेगा सच ! जब यह सब (चारों खम्भों) को धमकाए है !
कैसे बचेगा देश और कौन बचाएगा कौन आवाज़ लगाएगा !
जब सभी के मुहँ पर ताले लगाकर चाभियाँ उनको पकड़ाएं हैं !
जो मुज़रिम हैं कातिल हैं सभ्यता के उनके खौफ से वो भी थर्राये हैं !
जिन्हे उनको फांसी की सज़ा देनी है कानून से वह भी दुम दबाये है !
वर्बादियों के इस दौर में तकनीकियों ने अपने परचम फहराए हैं !
जुबान बंद हैं उँगलियों ने दिमाग को खोलकर जो बटन दबाये हैं !
यही तो कह रहा हूँ डिज़िटल दौर है स्कूलों में भासन सुनाये हैं !
जिनको यह नहीं पता की क्या कभी वो कोई डिग्री भी पाए हैं !
-डॉ.लाल रत्नाकर
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