रेखांकन : डॉ.लाल रत्नाकर |
बहुत हो गयी अब ग़द्दारी समझो न इसको लाचारी
चारों खम्भे टूट गये हैं ग़द्दारों की यारी से
या ग़द्दारों की ग़द्दारी से ।
जो सत्ता में बैठे हैं वे ग़द्दारी से ही आये हैं
यह कैसी लाचारी है जब ग़द्दारों की जब चॉदी हो
और जनता की बर्वादी हो !
यह सबको उल्लू बनाये हैं
देश को लुटवाये है और बर्वादी को लाये हैं
हत्या और बलात्कार से सबको ख़ूब डराये हैं !
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस में ख़ूब लड़ाये हैं सबको ये भरमाये हैं
दोस्त और दुश्मन की ये पहचान छुपाकर अपनों को
देश सौंपने आये हैं !
-डा. लाल रत्नाकर
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