चित्र ; श्रीमती रुक्मिणी यादव |
रौंदता जा रहा है मानवता के निशाँन !
उनको बहुत अच्छा लग रहा है वह !
जिसे भगवान मान बैठे हैं "भक्त" !
शैतान और इसमें फर्क तो है !
पर इतना जिसे केवल मशीन से ही !
पकड़ा जा सकता है जैसे विज्ञान से !
पाखण्डी भक्तों और भगवान को !
हम तो समझ रहे हैं पर हमारे लोग !
भक्तिभाव में लीन हैं तल्लीन हैं !
डरे हुए हैं ऐसे अदृश्य संशय से !
जिसे पाखंडियों ने गढा है अपने लिए !
जो दहाड़ रहा है वास्तव में वह !
वह नहीं है जो उसने समझ रखा है !
चिल्ला रहा है क्योंकि वह जानता है !
उसका असत्य उसे मार डालेगा !
डॉ.लाल रत्नाकर
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