सोमवार, 18 जनवरी 2021

मौत मौत होती है।

स्वाभाविक मौत मौत होती है।
मौत का कारण जब हादसा होता है।
या किसी को मार दिया जाता है।
सब कुछ इतना घालमेल हो जाता है।
की मौत को तमाशा बना दिया जाता है।
मारने वाले को मौत से डर नहीं लगता।
मरने वाला डरा हुआ मर जाता है।

सत्ता में बैठे हुए लोग।
मौत को किस तरह से लेते हैं।
सत्ता के लिए लोगों को मार देते हैं।
यह नए दौर का नहीं पुराने समय का चलन है।
मौत केवल मरने को नहीं कहते।
मरने के अलावा भी लोगों की मौत हो जाती है।
जब किसी का जमीर
मर जाता है तो।
मौत उससे भयावह नहीं होती।
बहुत से लोग मौत से नहीं डरते ।
क्योंकि वह जानते हैं की मौत तो सुनिश्चित है।
लेकिन लोग रोज रोज लोगों को मारते रहते हैं।
अपनी निरंकुशता
अपनी चालबाजी
अपनी धोखाधड़ी
और क्रूर मानसिकता से।
मारने के लिए किस किसको
सरकार ने अधिकार दे रखा है।
पुलवामा की मौत इस पर बहुत बड़ा
सवाल खड़ा करती है।
पुलिस हिरासत में मारे हुए नौजवान
इस पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।
घर-घर में आपसी कलह से मरते हुए लोग
इस पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।
समाज में पाखंड और अंधविश्वास से मरते हुए लोग
मौत पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।


हम सवाल खड़ा करते हैं
कि जिंदा रहने के लिए क्या किसी की मौत जरूरी है।
यदि हां तो खुलकर सामने आओ
स्त्र उठाओ और किसी को मार डालो।
बेईमानी से नाइंसाफी से चालबाजी से
किसी को मारना निश्चित तौर पर अमानवीय है।
कितनों को मारोगे
कहीं तो मरना होगा डूब कर चुल्लू भर पानी में।
क्योंकि तुम्हें दिखाई नहीं देती यह मौत ?
तुमने इसको बना रखा है तमाशा
और 1-1 को क्रम से बनाते हो अपना निशाना।
और यही सबसे बड़ा हथियार है
तुम्हारे अधिकार का तुम्हारी सामर्थ्य का
और दूसरे के प्रजा के रूप में प्राण न्योछावर करने का।

-डॉ लाल रत्नाकर

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