शुक्रवार, 21 मई 2021

यह कोई कविता नहीं है

 किसी कवियित्री की कविता की टिप्पणी है वह कह रही हैं की लिखने का मन नहीं करता, और यही बात बढ़ते बढ़ते पूरी कविता बता देती हैं सो ;









यह कोई कविता नहीं है
न लिखने के बहाने हैं।
सच्चाई से अवगत होते हुए
उसे छुपाने के हैं।
मनकर रहा है लिखने को
भय है जो लिखने नहीं देता।
मर रहे है बिलखने नहीं देता
दवाएं अस्पताल रसातल में हैं
कौन है जो निकालने नहीं देता
मन करे तो कैसे ?
लोकडाउन है
निकलने नहीं देता !
भाव हो या स्वभाव हो।
भक्त हैं गोबर चाहिए।
गाय का या सुअर का।
साहब हैं तो उठाएं कैसे।
मन तो करता है फेंके उनपर !
डर है फेंकू न समझ लें मुझको
बहुत हो गया है अब तो !
लिखो और लिखो साफ साफ
कुर्सी ही तो है जनाजा थोड़े है
जब नहीं संभलती तो
उतर क्यों नहीं जाते?
-डा लाल रत्नाकर

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