शनिवार, 12 जून 2021

समझ बैठे हैं जो मसीहा !

 
जब कोई आदत बन जाए।
तो जबान पर वही बार-बार आए।
यह कौन सी नई बात है।
सारी की सारी मन की बात।
और क्या है, क्या है उसमें ?
इरादा भी नेक हो तो बात बन जाती है।
सब कुछ बर्बाद करके 
दूसरे पर थोपने से।
क्या कहीं बात बन जाती है।
यह तो होना ही था, जो हुआ।
झूठ पकड़ में आनी ही थी, सो हुयी।
समझ बैठे हैं जो मसीहा !
भक्तिभाव में,अपने आव में अपने भाव में। 

-डॉ लाल रत्नाकर 

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