रविवार, 13 जून 2021

कल वह विरवे, विशाल वटवृक्ष बनेंगे।

 जो भी है उन्होंने अपने पीछे एक दुनिया छोड़ी है ! जिसकी जिम्मेदारी भी हमारे उसी सुधी समाज की है, जिससे उन्हें बहुत उम्मीद थी कि यह लोग एक दिन बदलेंगे। और हमने बदलते हुए देखा भी है। यह तस्वीर देखा तो चंद लाइने ऐसे ही कमेंट में निकल आई थी उन्हें मैं यहां भी लगा रहा हूं:

कविता की परंपरा में जीवन की सच्चाई की बात मैं यह ब्लॉग और कविता लिखते वक़्त भी किया था और आज भी उसी पर स्थिर हूँ यानी विचलित नहीं हुआ हूँ इसलिए एक स्त्री की त्रासद जीवनी का उसके परिवेश से गहरा नाता है, प्रकृति भी उसे उसी तरफ ले जाती है।

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दो तन थे
पर जान एक थी।
दो तन थे
पर मन एक था।
स्मृतियों को
संजोए रखना।
मन को बड़ा बनाए रखना।
एहसास।
को संबल बनाए रखना।
जीवन का लक्ष्य
संघर्ष की पीड़ा में
दुख के एहसास में।
हमेशा हमेशा।
विश्वास बनाए रखना।
जीवन की यात्रा में
मनोबल बनाए रखना।
कल वह विरवे,
विशाल वटवृक्ष बनेंगे।
मन में यह एहसास
जगाए रखना।
अब तन भी एक है
मन भी एक है।
दो आंखें हैं।
दोनों हाथ है।
विशाल होने वाले दो तन हैं
जो तुम्हारे साथ हैं।
(नमन)
डा लाल रत्नाकर

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