सोमवार, 14 जून 2021

जन जन का

तनहाई में स्मृतियां।
और धड़कने तेज हो जाती हैं।
जब निराशा घेर लेती है।
संभावनाएं खत्म हो जाती है।
तब हमारे सौंदर्य बोध का
अंत होने का संदेश बहुत बढ़ जाता है।
जैसे ही उम्मीदें बढ़ती है।
सौंदर्य बोध ही नहीं, सोच भी।
मगर महामारी के इस दौर में
उन निराशाजनक स्थितियों का
असंतोष उस हर व्यक्ति को खींचता है।
अन्याय और अत्याचार की ओर।
डॉ लाल रत्नाकर


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