शनिवार, 26 जून 2021

क्यों इतना बदरंग है।

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जब सब कुछ प्रतीकात्मक हो
आपको प्रतीकों की भाषा, आकार
और रंग समझ में न आता हो !
यह मानना जरा मुश्किल लगता है।
क्योंकि आप हमेशा इन प्रतीकों के पीछे
इन प्रतीकों के साथ साथ
इतने बड़े हुए हो जिसको समझने की
जन्म से आपको आदत डाली गई है
जहां तिलक, भगवा, काला और सफेद
बहुत अच्छी तरह से समझ में आता है
मुंडन और चंदन भी समझ में आता है
पत्थरों के रंगे हुए तमाम देवी देवता,
और बजरंगबली भी समझ में आते हैं।
पीपल के पेड़ में लपेटी हुई चुनरी,
भी समझ में आती है,
खेतों में गाड़ा हुआ बिजूका
तो समझ में आता है।
घरों पर लटका हुआ बजरबट्टू भी
तो समझ में आता है।
शरीर पर लिपटा हुआ धागा
तक तो समझ में आता है।
पर यह क्यों नहीं समझ में आता ?
कि उसके मीठे बोल में इतना छल है।
उसकी आंखों में जो रंग है।
क्यों इतना बदरंग है।
लंबे लंबे बालों और अपनी दाढि़यों से
वह अपना असली चेहरा छुपा रखा है।
यह क्यों समझ में नहीं आता।
चलिए समझने की कोशिश करिए।
यह मेरी रचना उसी प्रतीकात्मकता को
बयां करने की कोशिश कर रही है।
डॉ.लाल रत्नाकर
24.06.2021

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